Saturday 28 October 2017

A-329 क्यों कर छिपना है 27.10.17--1.40 PM

A-329 क्यों कर छिपना है 27.10.17--1.40 PM

क्यों कर छिपना है क्या छिपाना है मुझे 
तू मेरी तक़दीर है यही तो बताना है मुझे

तेरे चेहरे पर कैसी शर्म और हया होगी 
एक एक कर सबकुछ दिखाना है मुझे 

तू दिखती है शम्मआ यह बुझे न कभी 
बेशक़ बनना पड़े गर परवाना न मुझे 

तन्हा हुआ है मुकद्दर भी आबाद करूँगा 
यह करिश्मा भी कर के दिखाना है मुझे 

दावे कितने हैं सच्चे नहीं समझ पाओगे 
कितना प्रतिबद्ध हूँ मैं ये दिखाना है मुझे 

मेरी रहबर बनी थी अब मेरा प्यार है तू 
एक पल भी कटता नहीं जताना है मुझे 

यह सच ये है कि आखिरी इंतज़ार है तू 
इस इंतज़ार के नतीजे तक जाना है मुझे 

आ जाओ बैठ जाओ मेरे सानिघ्य होकर 
कुछ मौन होकर संकेतों से बताना है मुझे 

यह अंतिम विदाई है जान ले तू पाली अब 
कोई नहीं अपना सब झूठ है बताना है मुझे 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”




Thursday 26 October 2017

A-326 अपनी अपनी फ़ितरत 20.10.17--9.49 AM

A-326 अपनी अपनी फ़ितरत 20.10.17--9.49 AM

अपनी अपनी फ़ितरत बनी अपना अपना फ़साना है 
किसी ने ज़हर पीते जाना किसी ने ज़हर पिलाना है 

ज़हर छुपा के क्या करना किसी काम नहीं आना है 
मन जहरीला हो जाये तो क्या पीना और पिलाना है 

किसी को नफ़रत प्यारी किसी का प्यार आभारी है 
कोई नशे में मश्ग़ूल रहेगा किसी को नाम खुमारी है 

बिना हम के जिया जाए तो बने सुन्दर अफसाना है 
हम के साथ जिया जाये यह किस्सा बहुत पुराना है 

उस जहर की बात है जिससे अलविदा कहलाना है 
गीले शिकवे दोनों की बातें तो केवल एक बहाना है 

आशा तमन्ना तो रहेंगी अपेक्षा को दूर चले जाना है 
जीने का एक ही दस्तूर है सुनना सुनते चले जाना है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 19 October 2017

A-325 हम यूँ गवाँ बैठे 7.10.17--8.06 PM

A-325 हम यूँ गवाँ बैठे 7.10.17--8.06 PM 

शिकायतों के अम्बार लगा बैठे 
ज़िन्दगी अपनी हम यूँ गवाँ बैठे 
हम तो ग़लत साबित करते रहे 
वो अपनी शम्मआ ही बुझा बैठे 

सच्चाई तो कड़वी कड़क ही थी 
वो अपने दिल में कहीं लगा बैठे 
जो अख़्तियार था वो सब किया 
प्यार करते करते सब सुना बैठे 

प्रभावित करने की तासीर हमारी 
हम नुख़्से पे नुख़्सा आज़मा बैठे 
उनकी बात समझ में आयी नहीं 
हम रिश्ते को दाव पर लगा बैठे 

प्रमाण हमने भी बहुत एकत्र किए 
हर जुगत हम अपनी भी लगा बैठे 
बचते बचाते सब कुछ बचाते रहे 
फिर भी रिश्तों को हम गवाँ बैठे

न रहे वो न रही कोई तदबीर हमारी 
अपनी बगिया भी खुद ही लुटा बैठे 
कहाँ से लाऊँ तोहफ़ा अब तेरे लिए 
जिसको अपने हाथों से जला बैठे 

बड़ा ग़रूर था अपने बड़ा होने का 
अपने बड़प्पन को हम ही भुला बैठे 
मिला क्या जिसका मैं ज़िक्र करूँ 
एक दीया था हसरत का बुझा बैठे 

न रहा प्यार न रही तमन्ना कोई 
हर रिश्ते को कुछ ऐसा बना बैठे 
शिकायतों में रिश्ते ढूँढ़ते रहे हम 
प्यार की नदिया को हम भुला बैठे 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday 15 October 2017

A-322 नहीं दिल करता अब 14.10.17--12.05

A-322 नहीं दिल करता अब 14.10.17--12.05 

नहीं दिल करता अब सावन की बात करूँ 
उसकी दादागिरी में और कोई संवाद करूँ

नहीं चाहिए मुझे अब सावन की हरियाली 
हवा की आवारा गर्दी वो सोंधी सी पुराली

बूँदो की हिम्मत देखी कैसे मैं प्रहार करूँ 
नहीं रहा कोई साथी जिससे मैं बात करूँ 

नहीं अच्छे लगते अब हमें सावन के झूले 
कितनी बार गिरे हम सोचो कैसे हम भूलें 

उसकी रंग रलियां से कोई खिलवाड़ करूँ 
या अब सावन के थपेड़ों से कोई बात करूँ 

सावन ने ही छीनी मुझसे मेरे मन की बात 
कैसे इसको अपना लूँ क्यों करूँ मैं बात 

कभी डूबे ये प्रेम रस में कभी करे मलाल 
न भरोसा इसका कोई जैसे कोई दलाल 

कभी इर्द गिर्द मँडराये बाँहों में झूल जाये 
प्रेम रस में भींगे जब मुझको ही भूल जाये 

किया करते थे हम घंटों बैठे कई सम्वाद 
जब कोई अपना नहीं कैसे करें कोई बात 

नहीं अच्छे लगते वो कैसे मैं विश्वास करूँ 
तन मन धन सब झूठे किससे मैं बात करूँ 

जिसने दिया धोखा उससे मैं सम्वाद करूँ 
नहीं दिल करता अब सावन की बात करूँ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Tuesday 3 October 2017

A-321 वक़्त का आइना 3.10.17--9.09 AM

A-321 वक़्त का आइना 3.10.17--9.09 AM

वक़्त का आइना तुमने कभी देखा है 
कितने रिसते हुए ज़ख़्मों का लेखा है 

मोहब्बत की दास्ताँ का अपना भ्रम है 
प्यार का रस है अपना अपना करम है 

रिश्तों को उसने क्या ख़ूब निभाया है 
ऐसा हक़ तो केवल उसी ने जताया है 

प्यार के शब्दों को न कभी मिलाया है 
जब शब्द टूटा शब्दों से ही निभाया है 

जानते होते ज़ख़्मों की रिसने की रवायत 
सम्भल जाते न करते कोई नयी क़वायत 

न दर्द सहने पड़ते न उनका तजुरबा होता 
ख़ून रिसता तो क्या सिर्फ अजूबा होता 

सोया होता है आलम तो हम जागते हैं 
प्यार क़समें वादे भी हम ख़ूब जानते हैं 

दूरी इतनी कम कि हवा भी संकोच करे 
हवा की तंगदिली भी रह रह विनोद करे

रिश्ते निभाना तलवार की धार खेलना है 
जिंदगी की कश्मकश और दंड पेलना है 

ज़िंदगी निडर है या जिंदगी भी जज़्बात है 
जीना भी एक कला है या एक करामात है 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Sunday 1 October 2017

A-313 तुझको प्यार करूँ 3.9.17--2.02 PM

A-313 तुझको प्यार करूँ 3.9.17--2.02 PM

तू कहे तो तुझको प्यार करूँ 
परवाना बन तेरा दीदार करूँ 
तमन्ना तेरी पूरी हो जाये गर 
प्यार का थोड़ा इज़हार करूँ 

तेरी जुल्फों की तारीफ़ करूँ 
घटा घनघोर भी सुमार करूँ 
तेरी घनी जुल्फों के साये में 
तेरे आने का मैं इंतज़ार करूँ 

सुनहरे पल मैं पिरोता फिरूँ 
उन पलों का मैं दीदार करूँ 
उन पलों में तेरी ही चर्चा हो 
उनका केवल इज़हार करूँ 

तेरे नग्में भी सुबहानअल्ला 
तेरे नग्मों का गुणगान करूँ 
नग्मों की मस्ती छायी रहे 
नग्मों का मदिरा पान करूँ 

पलक झपके गुम हो जाते हो 
पलकों पर कैसे ऐतबार करूँ 
आँखों से ओझल गर हो जाओ 
खुद पर कैसे मैं ऐतबार करूँ 

प्यार के बदले क्या दूँ तुमको 
प्यार से प्यार का इज़हार करूँ 
प्यार पर मैं न्योछावर हो जायूँ 
अपनी जान का मैं निसार करूँ 

अपनी जान का मैं निसार करूँ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”