Thursday 26 October 2017

A-326 अपनी अपनी फ़ितरत 20.10.17--9.49 AM

A-326 अपनी अपनी फ़ितरत 20.10.17--9.49 AM

अपनी अपनी फ़ितरत बनी अपना अपना फ़साना है 
किसी ने ज़हर पीते जाना किसी ने ज़हर पिलाना है 

ज़हर छुपा के क्या करना किसी काम नहीं आना है 
मन जहरीला हो जाये तो क्या पीना और पिलाना है 

किसी को नफ़रत प्यारी किसी का प्यार आभारी है 
कोई नशे में मश्ग़ूल रहेगा किसी को नाम खुमारी है 

बिना हम के जिया जाए तो बने सुन्दर अफसाना है 
हम के साथ जिया जाये यह किस्सा बहुत पुराना है 

उस जहर की बात है जिससे अलविदा कहलाना है 
गीले शिकवे दोनों की बातें तो केवल एक बहाना है 

आशा तमन्ना तो रहेंगी अपेक्षा को दूर चले जाना है 
जीने का एक ही दस्तूर है सुनना सुनते चले जाना है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

2 comments:

  1. तोड़ दो ना वह कसम जो खाई है
    कभी कभी याद कर लेने में क्या बुराई है
    याद आप को किये बिना रहा भी नहीं जाता
    दिल में जगह जो आप ने बनाई है

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