Thursday 19 October 2017

A-325 हम यूँ गवाँ बैठे 7.10.17--8.06 PM

A-325 हम यूँ गवाँ बैठे 7.10.17--8.06 PM 

शिकायतों के अम्बार लगा बैठे 
ज़िन्दगी अपनी हम यूँ गवाँ बैठे 
हम तो ग़लत साबित करते रहे 
वो अपनी शम्मआ ही बुझा बैठे 

सच्चाई तो कड़वी कड़क ही थी 
वो अपने दिल में कहीं लगा बैठे 
जो अख़्तियार था वो सब किया 
प्यार करते करते सब सुना बैठे 

प्रभावित करने की तासीर हमारी 
हम नुख़्से पे नुख़्सा आज़मा बैठे 
उनकी बात समझ में आयी नहीं 
हम रिश्ते को दाव पर लगा बैठे 

प्रमाण हमने भी बहुत एकत्र किए 
हर जुगत हम अपनी भी लगा बैठे 
बचते बचाते सब कुछ बचाते रहे 
फिर भी रिश्तों को हम गवाँ बैठे

न रहे वो न रही कोई तदबीर हमारी 
अपनी बगिया भी खुद ही लुटा बैठे 
कहाँ से लाऊँ तोहफ़ा अब तेरे लिए 
जिसको अपने हाथों से जला बैठे 

बड़ा ग़रूर था अपने बड़ा होने का 
अपने बड़प्पन को हम ही भुला बैठे 
मिला क्या जिसका मैं ज़िक्र करूँ 
एक दीया था हसरत का बुझा बैठे 

न रहा प्यार न रही तमन्ना कोई 
हर रिश्ते को कुछ ऐसा बना बैठे 
शिकायतों में रिश्ते ढूँढ़ते रहे हम 
प्यार की नदिया को हम भुला बैठे 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

2 comments:

  1. तू हज़ार बार रूठेगी फिरभी तुझे मनालूँगा
    तुमसे प्यार किया है गुनाह नहीं...

    जो तुमसे दूर हो कर खुद को सज़ा दूंगा...

    ReplyDelete
  2. I really appreciate your wonderful approach towards creating a healthy relationship and thank you so much for your response. Gogia

    ReplyDelete