नहीं दिल करता अब सावन की बात करूँ
उसकी दादागिरी में और कोई संवाद करूँ
नहीं चाहिए मुझे अब सावन की हरियाली
हवा की आवारा गर्दी वो सोंधी सी पुराली
बूँदो की हिम्मत देखी कैसे मैं प्रहार करूँ
नहीं रहा कोई साथी जिससे मैं बात करूँ
नहीं अच्छे लगते अब हमें सावन के झूले
कितनी बार गिरे हम सोचो कैसे हम भूलें
उसकी रंग रलियां से कोई खिलवाड़ करूँ
या अब सावन के थपेड़ों से कोई बात करूँ
सावन ने ही छीनी मुझसे मेरे मन की बात
कैसे इसको अपना लूँ क्यों करूँ मैं बात
कभी डूबे ये प्रेम रस में कभी करे मलाल
न भरोसा इसका कोई जैसे कोई दलाल
कभी इर्द गिर्द मँडराये बाँहों में झूल जाये
प्रेम रस में भींगे जब मुझको ही भूल जाये
किया करते थे हम घंटों बैठे कई सम्वाद
जब कोई अपना नहीं कैसे करें कोई बात
नहीं अच्छे लगते वो कैसे मैं विश्वास करूँ
तन मन धन सब झूठे किससे मैं बात करूँ
जिसने दिया धोखा उससे मैं सम्वाद करूँ
नहीं दिल करता अब सावन की बात करूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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