एक दाग़ ढूँढता रहा
31.7.16—7.24AM
ख़ूबसूरती का राज कहीं तो हो
रुख़्सार पे काला तिल भी नहीं
उस तिल का राज कहीं तो हो
ख़्वाब देखता रहा तुम्हें पाने का
ख्वाबों का इज़हार कहीं तो हो
तुम ख्वाबों में भी मिलने आई थी
पर इसकी भी यादगार कहीं तो हो
हाँथों बढ़ाए जब मैंने तुम्हें छूने को
तेरे जिस्म का आधार कहीं तो हो
तुम रूठ गयी और मैं मनाता रहा
इसका भी इंतकाल कहीं तो हो
तुमने कहा था कि सपनों में आयोगी
ढेर सारा प्यार भी तूँ मुझपे लुटायोगी
सारी रात सोया रहा तेरी इंतज़ार में
इस जागृति का एहसास कहीं तो हो
पता नहीं तूँ मिलने आई भी कि नहीं
इसका गवाह रिश्तेदार कहीं तो हो
मैं फिर सो गया था मुझे पता भी नहीं
पर इस सोने का हिसाब कहीं तो हो
अब मैं जागा रहूँ कि फिर सो जाऊँ
इस फैसले का किरदार कहीं तो हो
………………किरदार कहीं तो हो
Poet:
Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
तू कल की तरह आज नहीं साथ मेरे तो क्या हुआ
ReplyDeleteमोहब्बत तो हम तेरी दूरियों से भी करते हे
Wonderful! & Thank you very much Swati for your comments!
Deleteतू कल की तरह आज नहीं साथ मेरे तो क्या हुआ
ReplyDeleteमोहब्बत तो हम तेरी दूरियों से भी करते हे