Monday 1 August 2016

A-018 एक दाग़ ढूँढता रहा 31.7.16—7.24AM

एक दाग़ ढूँढता रहा 31.7.16—7.24AM

एक दाग़ ढूँढता रहा कहीं तो हो
ख़ूबसूरती का राज कहीं तो हो

रुख़्सार पे काला तिल भी नहीं
उस तिल का राज कहीं तो हो

ख़्वाब देखता रहा तुम्हें पाने का 
ख्वाबों का इज़हार कहीं तो हो 

तुम ख्वाबों में भी मिलने आई थी 
पर इसकी भी यादगार कहीं तो हो

हाँथों बढ़ाए जब मैंने तुम्हें छूने को
तेरे जिस्म का आधार कहीं तो हो

तुम रूठ गयी और मैं मनाता रहा
इसका भी इंतकाल कहीं तो हो

तुमने कहा था कि सपनों में आयोगी
ढेर सारा प्यार भी तूँ मुझपे लुटायोगी

सारी रात सोया रहा तेरी इंतज़ार में
इस जागृति का एहसास कहीं तो हो

पता नहीं तूँ मिलने आई भी कि नहीं
इसका गवाह रिश्तेदार कहीं तो हो

मैं फिर सो गया था मुझे पता भी नहीं
पर इस सोने का हिसाब कहीं तो हो

अब मैं जागा रहूँ कि फिर सो जाऊँ
इस फैसले का किरदार कहीं तो हो 
………………किरदार कहीं तो हो 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


3 comments:

  1. तू कल की तरह आज नहीं साथ मेरे तो क्या हुआ

    मोहब्बत तो हम तेरी दूरियों से भी करते हे

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    1. Wonderful! & Thank you very much Swati for your comments!

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  2. तू कल की तरह आज नहीं साथ मेरे तो क्या हुआ

    मोहब्बत तो हम तेरी दूरियों से भी करते हे

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