Friday 28 August 2015

A-056 आँख खुली तो चश्मा याद आया-28.8.15—2.35 AM

आँख खुली तो चश्मा याद आया
टटोला और चश्मा पाया
एक टांग टूटी हुई है
तभी याद आया
बेटे ने बनवा के दिया था

बड़ा खुशनसीब है वो बाप
जिसका बेटे ख्याल रखते हैं
तभी आँखों से आंसूं टपक आये
बेटे की याद में उसकी फरयाद में

बापू यहाँ पर दस्खत करने हैं
तुमको दिखता नहीं है
नया चश्मा बनवाकर लाया हूँ

खुश रहो बेटा!
एक काँपती सी आवाज आई
दस्खत कहाँ करने है

आप अकेले बोर हो जाते हो
आप अब यहाँ रहोगे
अपने और साथिओं के संग
हमारे पास समय नहीं होता
आपका ख्याल कैसे रखें
यहाँ बहुत ख्याल रखते है
सारे सुख साधन  हैं
रोटी कपडा और मकान
तीनो मिलेंगे
आप सदा खुश रहोगे
कभी कोई शिकायत नहीं होगी
डॉक्टर भी यहाँ पक्के हैं
कोई भगदड़ भी नहीं होगी
तबियत जितनी मर्जी ख़राब ही
सेवा के लिए यहाँ परिचाकाएं भी हैं
हम भी मिलने आया करेंगे
आप घबरायें नहीं
हाँ हम रोज नहीं सकते
बच्चों का भी ध्यान रखना पड़ता है

एक आँसू और गिरा
और जमीन पर बिखर गया
चश्मा भी गिरा पड़ा था
नहीं गिरी थी तो वो याद
जो अब भी खड़ी थी.…जो अब भी खड़ी थी





A-077 एक अदद चाचू 9.8.15—5.20PM


A-077 एक अदद चाचू 9.8.15—5.20PM  

एक अदद चाचू ही उधार दे दो 
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो 
कुछ नहीं चाहिए मुझे अब और  
बस चाचू का थोड़ा प्यार दे दो 

पापा के पास देखो टाइम नहीं है 
मेरा घूमना फिरना क्राइम नहीं है 
घूमने फिरने भला मैं कैसे जाऊँगी 
फिर सहेलियों को क्या बताऊँगी 

मेरे पापा भी जाने कितने अच्छे हैं 
अपनी जुबां के कितने वो पक्के हैं 
जब भी अपने दफ्तर को जाते हैं 
बस दफ्तर के होकर रह जाते हैं 

मैंने खिलौने अभी और लाने हैं 
अपनी सहेली को भी दिखाने हैं 
उनके कपड़े भी तो सिलवाने हैं 
उनको धोकर तह भी लगाने हैं 

चाचू होते तो कितने प्यारे होते 
खरीद कर ला रहे गुब्बारे होते 
अपने कंधे पर मुझे घुमाते होते  
मेरे गुस्से पर वो मुस्कुराते होते 

एक अदद बुआ ही उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो 
कुछ नहीं चाहिए मुझे अब और  
बुआ का थोड़ा सा प्यार दे दो 

बुआ होती तो कितनी प्यारी होती 
बालों की चोटी भी मेरी न्यारी होती 
अपने हाँथों से मुझे खिलाती होती 
मैं रोती और वो मुझे सुलाती होती 

हम साथ साथ घूमने जाया करते 
गुड़ियों के संग जश्न मनाया करते 
एक दुसरे को छेड़ गुदगुदाया करते 
आपस में गले लग मुस्कुराया करते 

एक अदद मासी ही उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो 
कुछ नहीं चाहिए मुझे अब और  
बस मासी का थोड़ा सा प्यार दे दो 

मासी होती तो कितनी प्यारी होती 
माँ जैसी होती और मैं दुलारी होती 
अपनी बाँहों में ज़ज्ब सुलाती होती 
मैं रूठ जाती और वो मनाती होती 

जितना दिल चाहता लड़ लेती मैं 
उसके सामने अकड़ के खड़ लेती मैं 
अपने दिल की हर बात कर लेती मैं 
दिल चाहता तो बाँहों में भर लेती मैं 

एक अदद मामा ही उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो 
कुछ नहीं चाहिए मुझे अब और  
बस मामा का थोड़ा सा प्यार दे दो 

मामा होता तो ज़िन्दगी प्यारी होती  
लाड प्यार करता और दुलारी होती 
जहाँ दिल करता घूमने जाया करती  
जेब ढीली करवा मौज मनाया करती 

रिश्तों का अम्बर कितना सुहाना है 
हर रिश्ता अपने आप में खजाना है 
इन रिश्तों पर जब हक़ जताया है 
तब प्यार भी इनका बहुत पाया है 

इनके होते चिंता मुक्ति हो जाएगी 
बारात मेरी जब मेरे द्वारे आएगी 
चाचा चाची मेरे साथी बन आएंगे 
बुआ फूफा हाथी के संग इतरायेंगे 
मौसी मौसा भी फूले नहीं समायेंगे 
मामा मामी मुझको मेहंदी लगाएंगे 

एक अदद चाचू ही उधार दे दो 


Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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