Thursday 6 August 2015

A-072 पगला कहीं का 27.4.16—6.16 AM


A-072 पगला कहीं का 27.4.16—6.16 AM 

मेरी नन्ही सी जान
मैं तुझ पे कुर्बान 
नज़र न तुमको लग जाये 
तुम ही तो हो मेरी जान 
और माँ कहती है.. पगला कहीं का …… 

जल तरंगों से खेला करता हूँ 
लंगोट भी गीला करता हूँ  
हलवा पूरी करता हूँ 
नहीं किसी से डरता हूँ  

मन मेरा मुस्कुराता है 
माँ को गुस्सा आता है 
और माँ कहती है.. पगला कहीं का …… 

मुख में बेचैनी होती है 
रात की रैनी होती है 
मन मेरा घबराता है 
मुख में जबड़ा आता है 
जो मिलता वही चबाता हूँ 
माँ को नहीं बतलाता हूँ  

जब गले में कुछ फँस जाता है 
तब माँ को गुस्सा आता है  
चाँटा मुझे दिखाती है  
पगला मुझे बताती है  
और माँ कहती है.. पगला कहीं का …… 

निक्कर ख़ुद ही डाला करो 
बस्ता ख़ुद संभाला करो 
खाना ख़ुद ही खाया करो  
बर्तन ख़ुद उठाया करो 

कपड़े ख़ुद ही बदलने हैं
देखो वो कैसे संभलने हैं 
होम वर्क ख़ुद ही करना है
हर रंग भी ख़ुद ही भरना है

ट्यूशन भी तुमको जाना है
होड़ से नहीं घबराना है 
रखना एक ही निशाना है 
नम्बर अव्वल ही लाना है 

चेहरे से सदा मुस्कुराना है 
सबको नाच दिखाना है 
साथ में गाना भी गाना है 
सारेगामा में भी जाना है 

गाना भी तुमको गाना है
नम्बर भी अव्वल लाना है 
और माँ कहती है.. पगला कहीं का …… 

चाहे जितने भी दुखी रहो
ऊपर से लेकिन सुखी रहो 
आँटी को नमस्ते बुलाना है 
हर बात पर मुस्कुराना है 

पुरानी बातें सब भुलानी हैं 
कहानी भी सबको सुनानी है 

सब से अच्छा बन के रहता हूँ 
किसी को कुछ नहीं कहता हूँ 
और माँ कहती है.. पगला कहीं का …… 
और माँ कहती है.. पगला कहीं का …… 


Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

1 comment:

  1. Great poem create memories of bachpan

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