Tuesday 11 August 2015

A-076 इतनी सज धज के -23.7.15--9.10 AM

A-076 इतनी सज धज के -23.7.15--9.10 AM 

इतनी सज धज के तुम न जाया करो 
फूलों की तरह तुम न मुस्कुराया करो 
किसी को देखकर तुम न शर्माया करो 
अपने दिल की बात तुम न बताया करो
तुम न जाया करो …

यूँ जुल्फें निकलकर चोटी को खिलारकर 
सोलह सिंगार से नज़रों को वार कर 
आँखें मटका कर नज़रें झुका कर 
कन्धे झटका कर ओढ़नी गिरा कर 
तुम न जाया करो …

आँखों में कजरे का शमशीर  बनाकर 
पलकों पर कजरा को सुन्दर सजाकर 
नाक में नथनिया संगली को फसाकर 
कानों के झुमके में झुमकी लटकाकर 
तुम न जाया करो …

गर्दन घुमा कर उनके होश उड़ा कर 
सीने से लगा हार सबको दिखाकर    
कमर कमरधन्नी थोड़ी लचका कर 
अपने क़दमों को थोड़ा बहका कर 
तुम न जाया करो …

लोगों की फजीहत और बुरी नीयत में 
दुनिया के मेले में और कहीं अकेले में 
अजनबियों के बीच अपनों के समीप 
सैरगाह के झमेले में सर्कस के मेले में 
तुम न जाया करो …

किसी के गाँव में तारों की छावँ में
रात अँधेरी हो सुबह की फेरी हो 
भीगी चुनरिया हो चाहे देवर ही हो 
मौसम सुहाना हो दिल परवाना हो 
तुम न जाया करो …

अपने उदास हों जो हमारे खास हों 
रास्ते को छोड़कर रिश्ते मरोड़ कर
नजरें घुमा कर मुँह को छिपाकर 
निराशा के अँधेरे में सोच के घेरे में 
तुम न जाया करो …

इतनी सज धज के तुम न जाया करो 
फूलों की तरह तुम न मुस्कुराया करो

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

No comments:

Post a Comment