A-98 माँ की कोख 1.7.16—5.36 AM
मैं एक असाधारण इन्सान हूँ
माँ की कोख से पैदा हुआ हूँ
अभी अभी दुनिया का हुआ हूँ
मेरी कोई पहचान भी नहीं है
यहाँ कोई परेशान भी नहीं है
माहौल देखकर थोड़ा हैरान हूँ
पीछे ऐसे पड़े जैसे मैं विद्वान हूँ
एक जाता तो दूसरा आता है
कोई उठाता कोई घुमाता है
चूमता चाटता मुझको नचाता है
तो कोई पुचकारता ही जाता है
कोई लोरी सुना कर सुलाता है
कोई पैरों मैं चुटकी दे उठाता है
जिसके भी मन में जो आता है
वही करता जो उसको भाता है
कौन किसको क्या बताता है
मुझे कुछ समझ नहीं आता है
रोना चिल्लाना भी खूब आता है
माँ को सता बड़ा मज़ा आता है
भूख लगे तो चिल्लाना आता है
सारे लोगों को भगाना आता है
अपनी बात को मनवाना आता है
आसमाँ को ऊपर उठाना आता है
अपनों में प्यार जगाना आता है
दूसरों को अपना बनाना आता है
पूरी अपनी मर्जी करता हूँ
किसी से भी नहीं डरता हूँ
हर बात को मैं समझता हूँ
सबको टिका के रखता हूँ
मालिश भी खूब करवाता हूँ
नानी की याद भी दिलाता हूँ
अपनी मौज मस्ती में रहता हूँ
रोब किसी का नहीं सहता हूँ
दिल करे तो खुश हो जाता हूँ
तब मैं थोड़ा सा मुस्कुराता हूँ
क्यों कि ……………….!
मैं एक असाधारण इन्सान हूँ
माँ की कोख से पैदा हुआ हूँ
अभी अभी दुनिया का हुआ हूँ
अभी अभी दुनिया का हुआ हूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Wow! It is very nice poem & funny also.
ReplyDeleteI like it.
Wow! It is very nice poem & funny also.
ReplyDeleteI like it.
Amazing !
ReplyDeleteGreat going!!!