Sunday 31 July 2016

A-011 आँखों में छुपा लो 31.7.16—9.35AM


आँखों में छुपा लो 31.7.16—9.35AM

आँखों में छुपा लो मुझे कजरा बना के 
रह लेंगे सारी उमर तेरे नयनों में आ के

कभी हम तेरे चेहरे की पहचान होंगे
कभी जानम हम तेरे पे एहसान होंगे

कभी लोग जानेंगे तुझे मेरे नाम से 
कभी लोग जानेंगे तुझे मेरे काम से

सज के जब मैं तेरे पलकों पे आऊँगा
मेरा अपना अदब होगा मैं इठलाऊँगा

तेरे हर दर्द में भी तेरा साथ निभाऊँगा
तेरे नीर बहने से पहले मैं बह जायूँगा

हर ख़ुशी में मैं तेरी ख़ुशी बन जाऊंगा
तूँ मुस्करा कर देख मैं भी मुस्कराऊँगा

मुझे तुमसे है प्यार कितना मैं बताऊँगा
तेरी आँखों में रह तेरा साथ निभाऊँगा

जिंदगी के भी अद्भुत नज़ारे होंगे
तुम हमारे कभी हम तुम्हारे होंगे

न कोई बहाना होगा न सहारे होंगे
पूरे तुम्हारे वरना एक किनारे होंगे

कल सुबह के अपने ही नज़ारे होंगे
जब तूँ उठे हम हो चुके तुम्हारे होंगे

आँखों आँखों में चल रहे इशारे होंगे
साथ साथ होंगे पर दोनों कुँवारे होंगे
…………………पर दोनों कुँवारे होंगे

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Saturday 30 July 2016

A-021 कभी कभी आया करो 30.7.16—3.38AM

ऐसे ही कभी कभी आया करो 30.7.16—3.38AM

ऐसे ही कभी कभी आया करो
बाँहों में मेरी समा जाया करो
हर वो बात मुझसे जो करनी है
एक एक धीरे धीरे बताया करो

ऐसे ही कभी कभी आया करो
घण्टों बैठ कर तुम जाया करो
परिपक्वता तुममें झलकती है
पर कभी कभी मुस्कराया करो

बुलाना तो बस एक बहाना था
देखना तो तेरा यूँ मुस्कराना था
आने से चमन में जो गुल खिले
उनका एक गुलदस्ता बनाना था

मुझे अफसाना आज भी याद है
बिछुड़ना भी कितना अवसाद है
घंटों बैठे हम कितना विचरते थे
हर बात पे मंथन किया करते थे

समा जाने कैसे बीत जाता था
देखकर मंद मंद मुस्कराता था
तेरा साथ भी तो न्यारा होता था
हर लम्हा भी तो प्यारा होता था

तेरे आलिंगन में जो बैठा करते थे
लम्बी लम्बी बातें किया करते थे
सात जन्म के फेरे भी ले डाले थे
वायदे भी तो कितने दे डाले थे 

जब भी कभी तुम्हारी याद आएगी
पता है मुझे बेशक बहुत सतायेगी
पर यह बात किसी को नहीं बताएँगे
तुमसे पहले मुस्कराएँगे जीत जायेंगे

 मुझे पता है हम कभी एक न हो पाएँगे
फिर भी हम तुमको कभी भूल न पाएँगे
तेरी यादों के संग जी लेंगे ए मेरे सनम
पर कभी तुम्हारे ऊपर आँच नहीं लाएँगे

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


Sunday 24 July 2016

A-013 बन ठन के गोरी 23.7.16—6.42AM

बन ठन के गोरी 23.7.16—6.42AM


बन ठन के गोरी नाचे है
नयनों में कजरा बाचे है

पग पैरों घुंघरू बाजे है
अलता उसपर साजे है

ता ता ताथैया नृत्य करे है
पावन अपना कृत्य करे है

पनघट के मोहन भी बोले है
राधा के नयन क्यों डोले है

नयन तीर चले बिंदास चले 
चोली दामन संग साथ चले

कदम कदम का चुम्बन कर 
एक भात चले बहु भात चले

आड़े तिरछे देखो मढ़त है
थिर थिरक कैसे भगत है

पाँव पटक जबरन करत है
औरे के बारी नाही सहत है

अँखियाँ नचत दिल लुभावे
चेहरा चमकत होश  उड़ावे  

होंठ ससुरे चुम्बन नाहीं देवे
लाली अधर अगन भड़कावे

सुराहीदार गर्दन होए नचिया
लट झुमका नाचे हो सखिया

गर्दन सोने का हार जड़त है 
धड़के जिया सुनत बजत है

धौंकनी बन छाती जो धड़के
सजना का दिल क्यूँ भड़के

बाँध कमरबंध जब जोर लगावे
धरती नाचे सगले जहान हिलावे

लचके कमर लचक बन आवे
पिया का मन भी तरसत जावे

कदम कदम पर चूमे पायलिया
थिरकत थिरक नाचे साजनिया

नग्न नयन मुद्रा का योग बढ़त है
अँखियाँ नचत अधिकार बढ़त है

नयन इशारे नगारे भी बजत है
बदली चमके लिश्कारे सजत है

बरखा की बूँदें नाचे है गावे है
कभी बरसत है कभी डरावे है

कभी भागत है कभी भगावे है
चमक आवे चुपके से जावे है

यही जोग नारी सभों मन भावे
नारी सम्मान भी तभी मन आवे

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “pali”