A-066 तन्हा ज़िंदगी में 3.7.16—6.15 AM
तन्हा ज़िंदगी में साथ तुम्हारा था
रुखसत हुए तो ज़िक्र तुम्हारा था
आ जाओ अब और न बेसब्रा करो
साथ निभाने का जज़्बा तुम्हारा था
बेबाक ज़िंदगी में सब्र तुम्हारा था
तुम हंसीं थे अख़लाक हमारा था
फूल खिलते रहे हर एक एक पल
खुशबू तेरी रही अंदाज़ हमारा था
चहकते क़दमों की आहट तेरी रही
खुशियाँ मीलों की प्यार हमारा था
शबनम की चादर बिछा के बैठे रहे
हर शबनम में भी ज़िक्र तुम्हारा था
तेरे आने से बहारों में ज़िक्र आया
फूलों की ज़ुबाँ पे नाम तुम्हारा था
हर कली उठी तुम्हें आदाब करने
मुस्कान व आफ़ताब तुम्हारा था
रात चाँदनी चाँद की ठंडक ने मिल
किया जो दीदार वह भी तुम्हरा था
चाँदनी रात में तेरा मेरे करीब आना
तेरी शिद्दत और हौंसला तुम्हारा था
अब कहाँ हो ढूंढने से भी मिलते नहीं
सपने संजोए पर इंतज़ार तुम्हारा था
इंतज़ार करते हुए हम बिखर से गए
थके हारे थे पर इश्तिहार तुम्हारा था
तन्हा ज़िंदगी में तुम मेरे तस्सवुर थे
साथ निभाने का जज़्बा तुम्हारा था
ज़िक्र कैसे करे “पाली” अब बता
ज़िक्र-ए-आफताब ही तुम्हारा था
रुख़्सत हुए तो ज़िक्र तुम्हारा था
तन्हा ज़िंदगी में साथ तुम्हारा था
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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