Sunday 24 July 2016

A-013 बन ठन के गोरी 23.7.16—6.42AM

बन ठन के गोरी 23.7.16—6.42AM


बन ठन के गोरी नाचे है
नयनों में कजरा बाचे है

पग पैरों घुंघरू बाजे है
अलता उसपर साजे है

ता ता ताथैया नृत्य करे है
पावन अपना कृत्य करे है

पनघट के मोहन भी बोले है
राधा के नयन क्यों डोले है

नयन तीर चले बिंदास चले 
चोली दामन संग साथ चले

कदम कदम का चुम्बन कर 
एक भात चले बहु भात चले

आड़े तिरछे देखो मढ़त है
थिर थिरक कैसे भगत है

पाँव पटक जबरन करत है
औरे के बारी नाही सहत है

अँखियाँ नचत दिल लुभावे
चेहरा चमकत होश  उड़ावे  

होंठ ससुरे चुम्बन नाहीं देवे
लाली अधर अगन भड़कावे

सुराहीदार गर्दन होए नचिया
लट झुमका नाचे हो सखिया

गर्दन सोने का हार जड़त है 
धड़के जिया सुनत बजत है

धौंकनी बन छाती जो धड़के
सजना का दिल क्यूँ भड़के

बाँध कमरबंध जब जोर लगावे
धरती नाचे सगले जहान हिलावे

लचके कमर लचक बन आवे
पिया का मन भी तरसत जावे

कदम कदम पर चूमे पायलिया
थिरकत थिरक नाचे साजनिया

नग्न नयन मुद्रा का योग बढ़त है
अँखियाँ नचत अधिकार बढ़त है

नयन इशारे नगारे भी बजत है
बदली चमके लिश्कारे सजत है

बरखा की बूँदें नाचे है गावे है
कभी बरसत है कभी डरावे है

कभी भागत है कभी भगावे है
चमक आवे चुपके से जावे है

यही जोग नारी सभों मन भावे
नारी सम्मान भी तभी मन आवे

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “pali”


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