Wednesday 6 July 2016

A-139 वो पगली है 6.7.16—5.53 PM

A-139 वो पगली है 6.7.16—5.53 PM

वो पगली है मुझसे प्यार करती है
हर पल वो दो टूक निहार करती है

उसकी नज़र मेरा इंतज़ार करती है
मौन रहती है और इकरार करती है 

सपने सिंगार किये चली आती है 
सपनों में आती मुझे ही सताती है 

न खुद सोती है न ही सोने देती है 
करना कुछ नहीं बस जान लेती है 

शरारत उसके तन से झलकती है
बल खा के चलना क्या फब्ती है

मचल के चलना मचल के गिरना 
उठ कर मुस्कुराना और सम्भलना 

कभी मुस्कुराना कभी मौन हो जाना 
कभी शरारतें करते हुए  जान खाना 

जिद्द करती अपनी बात मनाने की
उसकी तड़फ  सिर्फ मुझे पाने की 

रूठ गयी ज़िद्द है मुझमें समाने की
कोई तरतीब नहीं उसे समझाने की 

उसकी बेताबी मेरे करीब आने की
करीब आकर मुझे गले लगाने की 

सीने से लग अपनी बात बताने की 
नज़रें मिलाते हुए प्यार जताने की 

मौन होती देखीं है उसकी निगाहें
नीर भरी आँखें भी दिखती हैं गाहें
पलकें बेजान हो लुढ़क जाती हैं
दर्द लिए हैं फिर भी मुस्कराती हैं 

वो पगली है मुझसे प्यार करती है
हर पल वो दो टूक निहार करती है


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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