Saturday 27 August 2016

A-022 न किसी से शिकवा 13.8.16—10.47 PM

 न किसी से शिकवा 13.8.16—10.47 PM
न किसी से शिकवा 
न किसी से शिकायत 
जिक्र भी नहीं करना 
न किसी को हिदायत 

मैंने ही चुना है तुमको 
यही बनेगी रवायत 
हम से ही शुरू होगी 
एक नयी कवायत 

तुम ही मेरी जान हो 
तुम ही मेरी शान हो 
तुम ही मेरी जिंदगी 
तुम ही पहचान हो 

मुकद्दर का मिलन है 
शहनाईयों का मेला 
कौन पूछे किसी को 
जब कोई हो अकेला 

यूँ गुजरेगी अपनी रैना 
अब मिलेंगे अपने नैना 
खुद की तन्हाई होगी 
बज रही शहनाई होगी 

खुद की तन्हाई होगी 
बज रही शहनाई होगी 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


Thursday 25 August 2016

A-003 क्यों करते रहते हो इशारे  26.8.16--11.02 AM


A-003 क्यों करते रहते हो इशारे  26.8.16--11.02 AM


क्यों करते हो इशारे जब पास आना नहीं है
क्यों देखे जाते हो जब साथ निभाना नहीं है

क्यों पास बुलाते हो जब मुस्कुराना नहीं है
क्यों करीब आते हो जो गले लगाना नहीं है

क्यों अश्क बहाते हो जो कुछ बताना नहीं है
क्यों इशारे करते हो जो पास बिठाना नहीं है 

क्यों दूर चले जाते हो जो हाँथ छुड़ाना नहीं है
सीने में क्या ढूँढ़ते हो जब कुछ जताना नहीं है

रुको और देखो तो ज़रा किसने रोका है भला 
वहाँ कोई भी नहीं है सिवाय तेरा अपना गिला 

जो हुआ था तब हुआ था अब नहीं हो रहा है 
यह जिंदगी का खेल अपना वर्चस्व ढो रहा है 

गिले को पकड़ कर किसी को क्या मिला है 
मिलता कुछ भी नहीं न मिलता कोई सिला है 

तुम्हारा जिंदगी है तुम्हार अपना ही विचार है 
तेरे बस में नहीं है उसका अपना इख़्तियार है 

विचारों का मेल का यहाँ अलग ही संसार है 
बाकी किस्से कहानियाँ हैं और केवल भार है 

किसी दूसरे को कभी सुन कर देखो तो ज़रा 
तो दिखे हर कोई अपने आप में कैसे है भरा 

किसी को सुनना ही तो जिंदगी का सार है 
यही मिलना होता है और यही चमत्कार है 

                                        "पाली"

Sunday 21 August 2016

A-044 हाँ जमूरा हूँ 15.8.16--7.29 AM

 हाँ जमूरा हूँ 15.8.16--7.29 AM

काठ की हाँडी अग्नि सवार है  
जिंदगी के दिन केवल चार हैं  
बचपन जवानी वृद्ध वयोवृद्ध  
जिंदगी से नहीं कोई तकरार है  

अच्छे पुत्र का सपना अच्छा है 
अच्छे मित्रों वाली बात पुरानी है 
अच्छा पति कभी हुआ ही नहीं 
पिता होना जज्बाती कहानी है 

जिंदगी के तमाम रंग अधूरे हैं 
एक नाटक व्यंग और जमूरे हैं 

सच झूठा है झूठ भी मक्कार है 
हर राग का अपना ही संस्कार है 

रिश्ते भी सारे झाग से भरे हैं 
नाम से ही जीवित वैसे मरे हैं 

रिश्ता अपनों से कोई पास नहीं है 
अपनेपन का भी एहसास नहीं है 

झूठ और मक्कारी से बने ये रिश्ते 
किसी का भी कोई ऐतबार नहीं है 


मेरे सज्जन मित्रों और सहेलियों 
तुम भी उलझ जायोगे पहेलियों
हाँ मैं अधूरा हूँ फिर भी पूरा हूँ 
मेरा यही काम है- हाँ जमूरा हूँ 
…………….. हाँ जमूरा हूँ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Saturday 20 August 2016

A-020 कैसी है तूँ 19.8.16—7.51 AM

कैसी है तूँ 19.8.16—7.51 AM

तलब सी रहती है जाने बिना 
तेरे चेहरे पे नज़र थी    
एक ही सवाल था  
एक ही खबर थी   
कैसी है तूँ 

मिलना तो एक बहाना था   
मकसद तो करीब आना था  
करीब आकर सच को जान लेना  
औरों की बात मान लेना 
कैसी है तूँ 

तेरी बातों में उलझा 
बहुत दूर निकल आया था 
सिर्फ एक बात पे नज़र थी 
और मैं ढूंढता रहा
कैसी है तूँ 

तेरा मुस्कराना हँसते जाना 
अपने दिल की बातें 
एक एक कर के बताना 
और मैं ढूंढता रहा
कैसी है तूँ 

तुमसे जो भी बात हुई 
आँसूओं की बरसात हुई 
दिल खोल के सुना
जानने को आतुर था
कैसी है तूँ 

तेरे चाहने वालों से 
मिलना भी होता था  
हर बात में तुमको ढूँढा  
हर बात में तुमको जोता
कैसी है तूँ 

ख्यालों में जब भी खोता था  
सपनों में तुमको पिरोता था  
तेरे बारे ही सबकुछ था 
एक ही चिंता ढोता था 
कैसी है तूँ 

हवा के रुख का भी 
इंतज़ार बना रहता था 
संशय सा बना रहता था 
कुछ तो खबर लगे 
कैसी है तूँ ……………कैसी है तूँ 

 Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Monday 15 August 2016

A-050 कभी तुम हमारे घर 15.8.16—8.08AM

 कभी तुम हमारे घर 15.8.16—8.08AM

कभी तुम हमारे घर 
कभी हम तुम्हारे घर 
आया जाया करेंगे
कभी तुम चाय पिलाना कभी हम पिलाया करेंगे 

क्या हुआ जो हम जुदा हो गए 
कभी कभी अफसाने भी सुनाया करेंगे 

लड़ते झगड़ते इतनी दूर निकल आये हैं 
कभी कभी दोस्त भी बन जाया करेंगे 

दर्द का एहसास जितना भी गहरा हो 
मलहम भी कभी कभी लगाया करेंगे 

आँखों में आंसूओं का समुन्द्र रहे तो रहे 
फिर भी कभी कभी मुस्कराया करेंगे 

यादों की लम्बी कतार हो तो क्या 
कुछ लम्हें गीतों संग भी बिताया करेंगे 

गीले शिकवे तो पहले भी हुआ करते थे 
अब कुछ नए तरीके से निपटाया करेंगे 

जिंदगी के चन्द खूबसूरत पलों के समेटे 
कभी कभी गले भी लग जाया करेंगे 

हम इतने बुरे तो अब भी नहीं हैं  
जब भी बुलाओगे हम भी आ जाया करेंगे


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Friday 12 August 2016

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ 13.8.16--7.04AM

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ 13.8.16—7.04AM

ਬੋੜ੍ਹ ਦੀ ਛਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਜਯਾਦਾ 
ਮਾਂ ਤੇਰੀ ਛਾਂ ਦੀ ਛਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ 
ਮੈਂ ਤੈਨੂ ਦੱਸਾਂ ਤਾਂ ਕਿਵੇਂ ਦਸਾਂ 
ਦੱਸਾਂ ਤੇ ਮੈਲੀ ਜੁਬਾਂ ਹੋਂਦੀ ਏ 

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ

ਉਮਰ ਸਾਰੀ ਕੱਢੀ ਪੁੱਤ ਪੁੱਤ ਜਪਦੀ  
ਦੇਣੀਆਂ ਏ ਦੇਖ ਦੇਖ ਹੈਰਾਨ ਹੁੰਦੀ ਏ 
ਮਾਂ ਹੈ ਜਾਂ ਰਬ ਦਾ ਕੋਈ ਰੂਪ ਦੂਜਾ 
ਉਮਰਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਪਯੀ ਕੁਰਬਾਨ ਹੁੰਦੀ ਏ 

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ

ਕੋਈ ਕਦਰ ਇਸ ਦੀ ਜਾਣੇ ਨ ਜਾਣੇ 
ਮਾਂ ਫਿਰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਹੋਂਦੀ ਏ 
ਪੁੱਤ ਦੇ ਬਸਤੇ ਫੁਲਕਾ ਅਚਾਰ ਹੋਵੇ 

ਆਪ ਭੁੱਖੀ ਪਈ ਲਾਚਾਰ ਹੋਂਦੀ ਏ 

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ

ਪੁੱਤ ਚੜ੍ਹਿਆ ਬੁਖਾਰ ਹੱਡ ਭੰਨੀ ਦਾ 
ਮਾਂ ਹੱਡ ਭਨ ਜਾਗੇ ਕੁਰਬਾਨ ਹੁੰਦੀ ਏ 
ਤਾਪ ਆਪ ਨੂੰ ਚੜ੍ਹਿਆ ਭਾਵੇਂ ਚਾਰ ਹੋਵੇ 
ਸੁੱਤੀ ਸੁੱਤੀ ਵੀ ਕਰਦੀ ਤਿਮਾਰ ਹੁੰਦੀ ਏ 

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ

ਮਾਂ ਦੇ ਅਥਰੂਆਂ ਦੀ ਕਦਰ ਕੌਣ ਜਾਣੇ 
ਪੁੱਤ ਦੇ ਅਥਰੂਆਂ ਤੇ ਕੁਰਬਾਨ ਹੁੰਦੀ ਏ 
ਇਕ ਇਕ ਅਥਰੂ ਪੂੰਜਦੀ ਪੁੱਜ ਗਈ ਏ 
ਫਿਰ ਵੀ ਪੁੱਤ ਨੂੰ ਵੇਖ ਨਿਹਾਲ ਹੁੰਦੀ ਏ 

ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ
ਏਹੋ ਜੇਹੀ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਮਾਂ ਹੁੰਦੀ ਏ

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 11 August 2016

ਆਪਣੀ ਤਾਂ ਸਿੱਧੀ ਲੜਾਈ ਏ 11.8.16—9.53PM



ਆਪਣੀ ਤਾਂ ਸਿੱਧੀ ਲੜਾਈ ਏ 11.8.16—9.53PM

ਆਪਣੀ ਤਾਂ ਸਿੱਧੀ ਲੜਾਈ ਏ 
ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਕੰਨੀ ਵੀ ਪਾਈ ਏ 
ਵਿਆਹੁਣਾ ਤਾਂ ਤੈਨੂੰ ਵਿਆਹੁਣਾ 
ਜਾਂ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿਣਾ ਸ਼ੁਦਾਈ ਏ 

ਗੋਟੇ ਸਿਤਾਰੇ ਦੀ ਟੋਰ ਤਾਂ ਵੇਖ  
ਕੁੜਤੀ ਵੀ ਨਵੀਂ ਸਿਲਵਾਈ ਏ 
ਕੰਨਾਂ ਵਿਚ ਝੁਮਕੇ ਤੇ ਵਾਲਿਆਂ 
ਨੱਕ ਵਿਚ ਨਥ ਵੀ ਕਢਾਈ ਏ 

ਵੱਲ ਵੀ ਮੈਂ ਸਿੱਦਰੇ ਕਰਾ ਲਏ ਨੇ 
ਵਾਲਾਂ ਨੂੰ ਮੇਹਂਦੀ ਵੀ ਮੈਂ ਲਾਈ ਏ 
ਚਸ਼ਮਾ ਚੜ੍ਹਿਆ ਸ਼ਿਖਰ ਵਾਲਾਂ ਤੇ 
ਟੌਰ ਆਪਣੀ ਮੈਂ ਨਵੀਂ ਬਣਾਈ ਏ 

ਅੱਖਾਂ ਵੀ ਮਟਕਣ ਕਜਰਾ ਲਾ ਕੇ 
ਚੇਹਰੇ ਤੇ ਲਾਲੀ ਵੀ ਮਲ ਲਾਈ ਏ 
ਹਸਰਤ ਮੇਰੀ ਦਾ ਤੂੰ ਹਾਲ ਨ ਪੂਛ 
ਤੈਨੂੰ ਉਡੀਕਦੀ ਕਿੰਝ ਘਬਰਾਈ ਏ 

ਵੱਲ ਨ ਪੈ ਜਾਏ ਕੋਈ ਮੇਰੀ ਗੱਲ ਨੂੰ 
ਗਰਦਨ ਵੇਖ ਮੈਂ ਸਿਧੀ ਅਕੜਾਈ ਏ 
ਸੰਗਲੀ ਸੋਨੇ ਦੀ ਮੂਲ ਲਈ ਵੇ ਬੀਬਾ 
ਤੇਰੇ ਖੂੰਟੇ ਤੇ ਬਨਣ ਕਸਰ ਥਾਂਈ ਏ 

ਅਥਰੂ ਰੋਕ ਕੇ ਖੜ ਗਈ ਉਡੀਕਦੀ 
ਬੱਸ ਜਿਵੈਂ ਤੇਰੀਏ ਆਈ ਤੇ ਆਈ ਏ 
ਮੈਨੂੰ ਨ ਰੋਕੀਂ ਕਿਤੇ ਮੇਰਾ ਸਾਹ ਰੁਕ ਜੈ  
ਲੈਣੀ ਨ ਪਵੇ ਭਾਂਵੇ ਅੰਤਿਮ ਵਿਦਾਈ ਏ 

ਲੈਣੀ ਨ ਪਵੇ ਭਾਂਵੇ ਅੰਤਿਮ ਵਿਦਾਈ ਏ 
....................... ਅੰਤਿਮ ਵਿਦਾਈ ਏ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Wednesday 10 August 2016

A-049 जब मैंने बोला I love You 10.8.16—7.53AM


जब मैंने बोला I love You 10.8.16—7.53AM

जब मैंने बोला I love You 
तो पता लगा कि मैं झूठ बोल रहा हूँ 
झूठ बोलने की इस रवायत को 
मैं खुद ही तौल रहा हूँ  
प्यार तो कभी किया ही नहीं 
सिर्फ जज्बातों को फरोल रहा हूँ 

इस शब्द का अर्थ कभी जाना ही नहीं 
फिर यह झूठ क्यों बोल रहा हूँ  

प्यार तो सोनी महिवाल ने किया था  
हीर और राँझा ने किया था 
जिंदगी बद से बदत्तर हुई 
और स्वीकार किया था 
सौ मुसीबतें सर पे आयी 
फिर भी इकरार किया था 
मौत का खंझर भी उनको रोक न सका  
ऐसे अपने प्यार को स्वीकार किया था 

हमने सुन्दर नार क्या देखी
I love you का बोर्ड लगा दिया 
एक दिन तकरार क्या हुई 
बस बोर्ड हटा दिया 
फिर ढूँढ़ते रहे रिश्ते Sorry के बहाने से 

अभिप्राय तो शरीर को पाना था 
बाकी तो सब झूठ बहाना था 

इस छिछोरेपन को तुम प्यार कहते हो  
शर्म भी नहीं आती जब इजहार करते हो  
कैसे भद्र महापुरुष हो तुम  
जीवन का संघार करते हो  
और कहते हो कि तुम प्यार करते हो  

प्यार एक अदब है 
धर्म का दूजा नाम है  
करीब न रहकर भी 
करीब रहना उसका काम है 
प्यार करने की अवस्था नहीं  
कुछ होने का नाम है 
जहाँ कोई अपेक्षा नहीं  
किसी का हो जाना ही अंजाम है  


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Saturday 6 August 2016

A-040 किसकी शिकायत करूँ 3.8.16—7.30AM

किसकी शिकायत करूँ 3.8.16—7.30AM


किसकी शिकायत करूँ जो मेरे अपने हैं
अगर वो अपने हैं तो वही तो मेरे सपने हैं

औरों की शिकायत करने से क्या फ़ायदा
जिनसे लेने देना भी नहीं फिर क्या कायदा

शिकायत तो उनकी की जाती हैं जो
अपने होते हैं और जो सपने पिरोते हैं

जिंदगी के सारे सुख दुख भी सहते हैं
सबकुछ सहते हुए हमारे साथ रहते हैं

एक ही खिलौने से खेल संग ही रोये थे
माँ के आँचल में भी एक साथ सोये थे

नंगे हो पोखर में साथ साथ नहाये थे
लड़ाई झगड़े हमने वहीँ पे निपटाए थे

है कोई माई का लाल गल्ती गिना सके
किसकी हिम्मत जो हाँथ भी लगा सके

वही भाई है जिसको खूब खेल खेलाये थे
अपने ही खिलौने से हम चुप भी कराये थे

आज क्या हो गया वो रिश्ता ही खो गया
काश लड़ पाते पर वह संजोग ही सो गया

जुबान चलती नहीं लगता साँप सूँघ गया
मेरा प्यारा सा भाई जाने कहाँ छूट गया

इससे तो वही अच्छा था लड़ते थे झगड़ते थे
प्यार भी करते थे "पाली" साथ साथ रहते थे

प्यार भी करते थे "पाली" साथ साथ रहते थे

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”