क्यों करते हो इशारे जब पास आना नहीं है
क्यों देखे जाते हो जब साथ निभाना नहीं है
क्यों पास बुलाते हो जब मुस्कुराना नहीं है
क्यों करीब आते हो जो गले लगाना नहीं है
क्यों अश्क बहाते हो जो कुछ बताना नहीं है
क्यों इशारे करते हो जो पास बिठाना नहीं है
क्यों दूर चले जाते हो जो हाँथ छुड़ाना नहीं है
सीने में क्या ढूँढ़ते हो जब कुछ जताना नहीं है
रुको और देखो तो ज़रा किसने रोका है भला
वहाँ कोई भी नहीं है सिवाय तेरा अपना गिला
जो हुआ था तब हुआ था अब नहीं हो रहा है
यह जिंदगी का खेल अपना वर्चस्व ढो रहा है
गिले को पकड़ कर किसी को क्या मिला है
मिलता कुछ भी नहीं न मिलता कोई सिला है
तुम्हारा जिंदगी है तुम्हार अपना ही विचार है
तेरे बस में नहीं है उसका अपना इख़्तियार है
विचारों का मेल का यहाँ अलग ही संसार है
बाकी किस्से कहानियाँ हैं और केवल भार है
किसी दूसरे को कभी सुन कर देखो तो ज़रा
तो दिखे हर कोई अपने आप में कैसे है भरा
किसी को सुनना ही तो जिंदगी का सार है
यही मिलना होता है और यही चमत्कार है
"पाली"
Bahut khoob
ReplyDeleteUp to four paragraph was extraordinary. After that it become drag. My opinion only.
ReplyDeleteDear Mr. Mooknayak! Your opinions are most welcome and I really got your conversation! I appreciate! I will take care in future! Thanks for your comments. Gogia
DeletePhotograph was great and impressive
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