Sunday 26 November 2017

A-110 मैं जानता हूँ 26.4.16—6.31 AM


A-110 मैं जानता हूँ 26.4.16—6.31 AM 

मैं जानता हूँ 
तेरे जान लेने से शायद कहीं ज़्यादा 
मन सुनता रहता है जैसे कोई प्यादा 

तेरा भूली बिसरी बातें करते जाना 
लड़ते झगड़ते हुए प्यार भी जताना 

कभी रुष्ट होकर मुँह को फेर लेना 
मैं गर न मनाऊँ तो रिश्ते उधेड़ देना 

तेरी मानता रिश्तों से मुँह मोड़ लेता 
बने बनाये रिश्तों से नाता तोड़ लेता 

मैं कम नहीं था यह भी जानता था 
तू कौन तेरी हर रग पहचानता था 

अपनी कमियाँ  तुमसे छिपाता था 
तभी तो कोई बात नहीं बताता था 

तुझपे भरोसे का मनन नहीं किया है 
इसीलिए साथ भी तेरा नहीं दिया है 

मैंने तुमको चोट भी बहुत पहुँचाई है 
इसीलिए आज ये नौबत भी आई है 

बेशुमार गलतियों का ज़खीरा हूँ मैं 
तेरी तन्हाई तेरे बेमन की पीड़ा हूँ मैं 

सुनने में सुनने की कला न आई मुझे 
प्यारी किरणें भी नहीं दिखाई दी तुझे 

मग़र……. 
तुम तो ख़ूबसूरत दिल की हसीना हो 
बिना कोई शक गहनों का नगीना हो 

तुम्हें प्यार दिल से करता हूँ जानेमन 
किसी की लाडली पर मेरी मीना हो 

सुन लेता गर तुम्हें तुम मेरे नसीब होते 
तुम तन्हा न होते आज मेरे करीब होते 

जो भी हुआ उसका मैं ही जिम्मेदार हूँ 
तुझे तकलीफें पहुँचाने का क़िरदार हूँ       


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali” 

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Saturday 25 November 2017

A-148 कभी तुम मिल पाते 15.4.16--10.33 AM

A-148 कभी तुम मिल पाते 15.4.16--10.33 AM 

कभी तुम मिल पाते तो कैसा होता 
नज़रें ग़र मिला पाते तो कैसा होता 
बहुत सारी बातें तुम कर सकते हो 
कभी मुझे सुन पाते तो कैसा होता 

सोचा नहीं तुमसे मिलने से पहले 
मिलकर जाना की तुमसे हैं सनम 
बिछुड़ जाना भी बना दस्तूर सा है 
कभी साथ रह पाते तो कैसा होता 

बादलों की गरज फूलों सा महकना 
गुस्से भरी आँखें व प्यार से चहकना  
कभी नज़रें चुराना और मुँह फेर लेना 
कभी प्यार भी जताते तो कैसा होता 

आसमान भरे इरादे पूरे करने थे सारे 
मेरे सारे सपने जो अब हुए थे तुम्हारे 
कहने को बहुत सारी दिल में थी बातें 
कभी हम भी कह पाते तो कैसा होता 

कभी हम मिल पाते तो कैसा होता 
कभी तुम्हें सुन पाते तो कैसा होता 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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Saturday 18 November 2017

A-067 शिकायतों संग 5-7-15 8;00AM


A-067 शिकायतों संग 5-7-15 8;00AM 

शिकायतों संग मैं तंग आ गयी हूँ 
स्वच्छ विचार ख़ुद ही खा गयी हूँ 
नफरत के संग उधेड़ बुन करती रही 
कोशिश जीने की और मैं मरती रही 

शिकायत करने से कुछ मिलता नहीं 
बहुत सोचा पर कुछ भी हिलता नहीं  
जो नहीं है उसका गिला क्या करना 
रो कर मिले वैसा मिला क्या करना 

परिवार का सहारा खिसक गया है 
आँसूओं की तरह ये बिखर गया है 

नहीं लगता अब कुछ सँवरेगा कभी 
भरोसा टूट गया जो उभरा था कहीं 

कोई भी तो नहीं जो मेरे करीब हो 
दिल का अमीर  मन का गरीब हो 
न गिले हों न शिकवे न शिकायतें 
विचार ही बने कुछ सुन्दर आयतें 

एक नए युग की मैं शुरुआत करूँ 
जो बीत चुका उसकी न बात करूँ 
मेरी आवाज़ और उसको पुकार लूँ 
हरेक पल को पहले मैं स्वीकार लूँ 

ख़ुद का भरोसा बनने सा लगा है 
श्रद्धा सुमन भी पनपने सा लगा है 
थोड़ा विश्वास भी आने सा लगा है 
नया जादू बनकर छाने सा लगा है 

किसी की शिकायत करूँ तो क्यों 
किसी की हिमायत करूँ तो क्यों 

मेरा ही परिवार है वही तो अपने हैं 
सभी मेरे अपने और मेरे ही सपने हैं 


 Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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Thursday 16 November 2017

A-117 रोज सुबह 15.6.15 5:37 AM


A-117 रोज सुबह 15.6.15  5:37 AM 

अंधेरा थोड़ा कम हुआ जाता है 
रवि के आने की ख़बर बताता है 
लाल गोला जैसे ही मुस्कुराता है 
हर चेहरा खिलता चला जाता है 

धूप खुलकर निखरने लगी है 
चहलकदमी अब बढ़ने लगी है 
फिजा भी अब महकने लगी है 
चिड़ियाँ भी अब चहकने लगी हैं 

किरण उम्मीद बनकर आयी है 
सुनहरे रंग बिखेरती वो छाई है 
चिड़िओं में एक उमंग जागी है 
ये उड़ी वो उड़ी और वो भागी है 

ठंडी हवा के झोके आने लगे हैं 
हर बदन को छूकर जाने लगे हैं 
हवा के हिलोरे बल खाने लगे हैं 
खूबसूरत चेहरे मुस्कुराने लगे हैं 

कहाँ मिलता यूँ ज़मीं से आसमाँ  
कहाँ मिलता ऐसा सुन्दर कारवाँ 
कहाँ मिलते ये हवाओं के बुल्ले 
कहाँ मिलते ये दतवन ये कुल्ले 

कहाँ मिलता इतना रंगी ये समाँ 
मिलती आज़ादी घूमे सारा जहाँ 
कली फूल बनकर खिलती वहाँ 
हर कोई कद्र करे कुदरती यहाँ 

कहाँ मिलता पंछियों का खज़ाना 
हवा में लहराना बल खाते जाना 
भरनी उड़ान फिर उड़ते हुए जाना 
बिछुड़ कर भी एक जुट हो जाना 

ऊँची उड़ान भर इतराते जाना 
मटक-मटक कर शोर मचाना 
औरों के साथ गाने भी गाना 
कुदरत की रौनक बढाते जाना 

डालियों पर बैठ निगाहें दौड़ाना 
एक ने उड़ना सब ने उड़ जाना 
घूम फिर कर वापस आ जाना 
सबने मिलकर शोर भी मचाना 

हमें सोते हुए से भी जगाना 
हमें आगाह भी करते जाना 
सुस्ती को भी साथ लेकर आना 
रोज़ सुबह भी तुम जल्दी आना 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”