Saturday 18 November 2017

A-067 शिकायतों संग 5-7-15 8;00AM


A-067 शिकायतों संग 5-7-15 8;00AM 

शिकायतों संग मैं तंग आ गयी हूँ 
स्वच्छ विचार ख़ुद ही खा गयी हूँ 
नफरत के संग उधेड़ बुन करती रही 
कोशिश जीने की और मैं मरती रही 

शिकायत करने से कुछ मिलता नहीं 
बहुत सोचा पर कुछ भी हिलता नहीं  
जो नहीं है उसका गिला क्या करना 
रो कर मिले वैसा मिला क्या करना 

परिवार का सहारा खिसक गया है 
आँसूओं की तरह ये बिखर गया है 

नहीं लगता अब कुछ सँवरेगा कभी 
भरोसा टूट गया जो उभरा था कहीं 

कोई भी तो नहीं जो मेरे करीब हो 
दिल का अमीर  मन का गरीब हो 
न गिले हों न शिकवे न शिकायतें 
विचार ही बने कुछ सुन्दर आयतें 

एक नए युग की मैं शुरुआत करूँ 
जो बीत चुका उसकी न बात करूँ 
मेरी आवाज़ और उसको पुकार लूँ 
हरेक पल को पहले मैं स्वीकार लूँ 

ख़ुद का भरोसा बनने सा लगा है 
श्रद्धा सुमन भी पनपने सा लगा है 
थोड़ा विश्वास भी आने सा लगा है 
नया जादू बनकर छाने सा लगा है 

किसी की शिकायत करूँ तो क्यों 
किसी की हिमायत करूँ तो क्यों 

मेरा ही परिवार है वही तो अपने हैं 
सभी मेरे अपने और मेरे ही सपने हैं 


 Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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