Tuesday 7 November 2017

A-304 हंसीं रात 2.7.17--7.13 PM

A-304 हंसीं रात 2.7.17--7.13 PM 

मुबारक हो हंसीं रात जब हुई थी मुलाक़ात 
हर पल मुबारक था जब तू हुई थी जज़्बात 

बिना जुबाँ खुले जब हुई थी मुकम्मल बात  
तन्हा होकर सो गयी थी आगोश में उस रात 

न रहना पड़ा मझधार न किसी का इंतज़ार
थोड़ी सी बेक़रारी हुई बिला वजह हर बार  

घूँघट में छिप कर न करो कोई मन की बात 
उलझ न जायें हम कहीं हो न जाएं जज्बात 

सपनों को आने दो बन जाने दो उसे सौगात 
हमें भी मिल जाने दो होने दो कोई करामात 

ज़िक्र आ जाये तभी तो ख़ुशनुमा होंगे विचार 
मन में कहीं पीड़ा होगी खिलेंगे कमल हज़ार 

बन जाये करामात ज़िक्र आए कभी कभार
आज हो जाये मुलाक़ात न रहे कोई विचार 

सपनों को आज़ादी दो करो न कोई सवाल 
वरना रह जायेगा कहीं दिल में एक मलाल 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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