A-304 हंसीं रात 2.7.17--7.13 PM
हर पल मुबारक था जब तू हुई थी जज़्बात
बिना जुबाँ खुले जब हुई थी मुकम्मल बात
तन्हा होकर सो गयी थी आगोश में उस रात
न रहना पड़ा मझधार न किसी का इंतज़ार
थोड़ी सी बेक़रारी हुई बिला वजह हर बार
घूँघट में छिप कर न करो कोई मन की बात
उलझ न जायें हम कहीं हो न जाएं जज्बात
सपनों को आने दो बन जाने दो उसे सौगात
हमें भी मिल जाने दो होने दो कोई करामात
ज़िक्र आ जाये तभी तो ख़ुशनुमा होंगे विचार
मन में कहीं पीड़ा होगी खिलेंगे कमल हज़ार
बन जाये करामात ज़िक्र आए कभी कभार
आज हो जाये मुलाक़ात न रहे कोई विचार
सपनों को आज़ादी दो करो न कोई सवाल
वरना रह जायेगा कहीं दिल में एक मलाल
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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