Sunday 5 November 2017

A-324 सावन की प्रेम कथा 16.10.17--2.55 AM

A-324-सावन की प्रेम कथा 16.10.17--2.55 AM

सावन की प्रेम कथा की कैसे अब मैं बात करूँ 
जलथल होकर बह जाये तो कैसे सम्वाद करूँ 
कभी धूप कभी छांव में रहने की तमन्ना उसकी 
ऐसे होने के उसके रंग से कैसे मैं परिहास करूँ 

हवा के थपेड़ों से वो लड़ती जाती सहती जाती 
खुद इतराती लगती प्यारी सबके मन को भाती 
उसकी आवारा गर्दी की कैसे अब मैं बात करूँ 
उनकी अँखियों में देखूँ या फिर आँखें चार करूँ 

मेरी छतरी संग उड़ती जाए कैसे मैं विवाद करूँ 
मैं थोड़ा संभल जाऊँ तभी तो मैं कोई बात करूँ 
तन मन से सपनों में आये तभी तो मनुहार करूँ 
नींद मुझे भी गर आ जाये तभी तो मैं दीदार करूँ 

तेरा मेरे सपनों में आ जाना मेरी विवश्ता रही है 
सपनों में तू आ ठहरे तो क्यों न तेरा मनुहार करूँ
बूँद बूँद कर भरे तलैया उफ़ान बन कर आये मैया 
तेरे वक्षस्थल को देखूँ या फिर तेरा मैं दीदार करूँ 

ग़लती मुझसे हो जाती है कैसे भला इंकार करूँ 
तेरी क़िस्मत में मैं नहीं हूँ कैसे तुझसे बात करूँ 
तेरी महिमा गाते गाते गला तो मेरा भी रुँध गया 
तू ही बता मैं कैसे भला तुमसे कोई सम्वाद करूँ 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”











2 comments:

  1. मौसम है बारिश का और याद तुम्हारी आती है,
    बारिश के हर कतरे से आवाज़ तुम्हारी आती है।

    बादल जब गरजते हैं दिल की धड़कन बढ़ जाती है,
    दिल की हर धड़कन से आवाज़ तुम्हारी आती है।

    जब तेज़ हवाएँ चलती हैं तो जान हमारी जाती है,
    मोसम है कातिल बारिश का और याद तुम्हारी आती है।

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