Thursday 2 November 2017

A-095 बात यूँ आगे बढ़ी 15.3.16—6.18 AM

A-095 बात यूँ आगे बढ़ी 15.3.16—6.18 AM
अरमान उसके भी थे ख़्वाब मेरा भी था 
अदा उसकी भी थी शबाब मेरा भी था 

कदम सरकने लगे हथकंडे की तरह 
प्यार पनपने लगा सरकंडे की तरह 

आसमान भी जमीं पर झुकता गया 
कारवाँ हमारे ताल पर रुकता गया 

वक़्त गुजर गया बहते पानी की तरह 
खुशबू बिखर गयी रात रानी की तरह 

हम भी बेख़ौफ़ हुए नज़रें मिलाते रहे 
वो भी करीब आये थोड़ा शरमाते रहे 

इश्क़ ईमान था खुदा मेहरबान हुआ 
ढोल नगारे बजे वक़्त कद्रदान हुआ 

वक़्त हमसफ़र हुआ जज़्बा दिलों का 
प्यारा सफर रहा शिकवे व गिलों का 

तन्हाईयाँ कटने लगीं यादों के संग 
फूल खिलने लगे हर मौसम हर रंग 

मेरी कविता आज भी यूँ ही आती है 
कभी खुले दिल और कभी शर्माती है 

कभी रूठती है रूठ कर भाग जाती है 
खुद ही मान जाती और चली आती है 

कभी ढोल बजाती और मुझे डराती है 
कभी लड़ती है कभी गले लग जाती है 

मेरी कविता आज भी यूँ ही जाती है
मेरी कविता आज भी यूँ ही आती है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

5 comments:

  1. Replies
    1. Thank you so much Reena Ji for you wonderful comments! Gogia

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  2. कहाँ पूरी होती हैं दिल की कहा ख्वाइशें,
    की बारिश भी हो,
    यार भी हो...
    और पास भी हो.....

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