A-320 दर्द की तन्हाईयां 29.9.17--10.24 AM
तुम क्या जानो दर्द की तन्हाईयां
जब रिसने लगती है रुसवाइयां
जब लहू लूहान होती हैं ज़िंदगी
जब हरेक पल देता है दुहाईयां
क्यों होता प्यार क्यों रुसवाइयाँ
क्यों होती रोशनी क्यों तन्हाईयां
क्यों क़तरे ज़िस्म को स्पर्श करें
क्यों करते लोग इतनी बुराईयां
क्यों खुशियाँ ग़ायब होने लगीं
क्यों किस्मत बाट जोहने लगी
क्यों गुफ़्तगू इतनी परेशान हो
क्यों ज़िंदगी देख देख हैरान हो
क्यों अश्क़ तेजाब होने लगता है
क्यों ख़ुशियों में डर झलकता है
क्यों ख़ुशियों का ठिकाना नहीं
क्यों ग़म किसी ने पहचाना नहीं
मुस्कुराहट की लौ जल रही हो
रोशनी भी कहीं थम सी रही हो
जिंदगी दिखने लगे दो फाड़ में
किस्मत भी फँसी उसी आड़ में
यह कैसा रिश्ता सब अधूरा है
कौन मिले कि लगे सब पूरा है
ज़िम्मेवारी लेते ही निभा पयोगे
वर्ना सारी उम्र सिर्फ पछ्ताओगे
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
Nice lines. Sat Shri Akal Ji.
ReplyDeleteGreat Composition Amrit Ji
ReplyDeleteमैं खड़ा बीच मझधार किनारे क्या कर लें गे
ReplyDeleteमेने छोड़ी पतवार सहारे क्या कर लें गे
तुम किस्मत किस्मत करो जियो याचक बनकर
में चला शितिज के पार सितारे क्या कर लें गे
तुम दिखलाते रहो राह मंज़िल की,
मैं आंखों से लाचार इशारे क्या कर लें गे
हमने जो कुछ भी कहा वही कर बैठे
जो सोचे सौ-सौ बार बेचारे क्या कर लें गे
ना समझ कहोगे तुम मुझको मालूम है
यह फतवे हैं बेकार तुम्हारे क्या कर लेंगे
मैं खड़ा बीच मझधार किनारे क्या करलेंगे...
Mr. A.K. Arora, Each time I see, You write poetry very beautifully. Do you have any blog or book published?
Deleteand by the way! Thank you so much for your regular visits to my poetry!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteNo I didn't have any blog. I have liking for poems and Shairy.
ReplyDeleteSigning old classics songs is my bobby.