A-110 मैं जानता हूँ 26.4.16—6.31 AM
मैं जानता हूँ
तेरे जान लेने से शायद कहीं ज़्यादा
मन सुनता रहता है जैसे कोई प्यादा
तेरा भूली बिसरी बातें करते जाना
लड़ते झगड़ते हुए प्यार भी जताना
कभी रुष्ट होकर मुँह को फेर लेना
मैं गर न मनाऊँ तो रिश्ते उधेड़ देना
तेरी मानता रिश्तों से मुँह मोड़ लेता
बने बनाये रिश्तों से नाता तोड़ लेता
मैं कम नहीं था यह भी जानता था
तू कौन तेरी हर रग पहचानता था
अपनी कमियाँ तुमसे छिपाता था
तभी तो कोई बात नहीं बताता था
तुझपे भरोसे का मनन नहीं किया है
इसीलिए साथ भी तेरा नहीं दिया है
मैंने तुमको चोट भी बहुत पहुँचाई है
इसीलिए आज ये नौबत भी आई है
बेशुमार गलतियों का ज़खीरा हूँ मैं
तेरी तन्हाई तेरे बेमन की पीड़ा हूँ मैं
सुनने में सुनने की कला न आई मुझे
प्यारी किरणें भी नहीं दिखाई दी तुझे
मग़र…….
तुम तो ख़ूबसूरत दिल की हसीना हो
बिना कोई शक गहनों का नगीना हो
तुम्हें प्यार दिल से करता हूँ जानेमन
किसी की लाडली पर मेरी मीना हो
सुन लेता गर तुम्हें तुम मेरे नसीब होते
तुम तन्हा न होते आज मेरे करीब होते
जो भी हुआ उसका मैं ही जिम्मेदार हूँ
तुझे तकलीफें पहुँचाने का क़िरदार हूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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Hunter
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Nice sir ji
ReplyDeleteWah kya bat hai.
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