A-106 अपने हाथों से 12.3.16—10.46 AM
अपने हाथों से तुझको रुख्सत किया
फिर क्यों इंतज़ार है तेरे आने का
सिलवटें हज़ार, पर हैं तो अपनी ही
फिर क्यों इंतज़ार है उनको मिटाने का
हर साल मंजर आयेंगे, फूल भी खिलेंगे
फिर क्यों इंतज़ार है उनको रिझाने का
पसीने से बेज़ार हो चुकी है ज़िंदगी
क्यों फ़िक्र है ख़ुद को और थकाने का
बेवफा तुम भी नहीं बेवफा हम भी नहीं
फिर क्यों इंतज़ार है रिश्ता भुलाने का
जुदा होने का चुनाव भी हमने किया है
फिर क्यों इंतज़ार है तेरे आने का
प्यार तो हम अब भी करते हैं सनम
फिर क्यों इंतज़ार है और जताने का
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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