Tuesday 26 December 2017

A-127 मेरे तन्हा होने का

A-127 मेरे तन्हा होने का 

मेरे तन्हा होने का तुम्हें आभास नहीं है 
शायद तुमको मुझपर विश्वास नहीं है 

तेरे लिए ये एक मामूली सी बात होगी 
मेरी जिंदगी में बचा कोई श्वास नहीं है 

ढूँढोगी तुम मुझे जब कभी फ़ना होगी 
नैनों में नीर निरन्तर का हिसाब नहीं है  

आज़मा लेना मुकद्दर भी कतई अपना 
तन्हाई तो होगी मगर एहसास नहीं है 

सफ़र करते करते अकेले जो पड़ गए 
दिखेगा कोई करीबी रिश्तेदार नहीं है 

रेतीले टीले किक्कर बेशक़ अकेले हों 
सामंजस्य है कोई विरोधाभास नहीं है 

रेतीली पगडंडियाँ ख़त्म होती ही नहीं 
काटों की चुभन का तिरस्कार नहीं है 

पाँव के छालों में बेशक़ दर्द होता है 
पर चलने से अब कोई इन्कार नहीं है 

चाँद की रौशनी और रात अकेले हम 
नींद न भी आये कोई ऐतराज़ नहीं है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

No comments:

Post a Comment