A-127 मेरे तन्हा होने का
मेरे तन्हा होने का तुम्हें आभास नहीं है
शायद तुमको मुझपर विश्वास नहीं है
तेरे लिए ये एक मामूली सी बात होगी
मेरी जिंदगी में बचा कोई श्वास नहीं है
ढूँढोगी तुम मुझे जब कभी फ़ना होगी
नैनों में नीर निरन्तर का हिसाब नहीं है
आज़मा लेना मुकद्दर भी कतई अपना
तन्हाई तो होगी मगर एहसास नहीं है
सफ़र करते करते अकेले जो पड़ गए
दिखेगा कोई करीबी रिश्तेदार नहीं है
रेतीले टीले किक्कर बेशक़ अकेले हों
सामंजस्य है कोई विरोधाभास नहीं है
रेतीली पगडंडियाँ ख़त्म होती ही नहीं
काटों की चुभन का तिरस्कार नहीं है
पाँव के छालों में बेशक़ दर्द होता है
पर चलने से अब कोई इन्कार नहीं है
चाँद की रौशनी और रात अकेले हम
नींद न भी आये कोई ऐतराज़ नहीं है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
No comments:
Post a Comment