Monday 25 December 2017

A-165 हम तन्हा हुए

A-165 हम तन्हा हुए  

हम तन्हा हुए उनकी जवानी देखकर 
उन्होंने मुझे एक दीवाना करार दिया 

हमने लोगों को उनके किस्से सुनाये 
लोगों ने इसे अफ़साना करार दिया 

हम उनके मजहब के गीत गाते रहे 
लोगों ने इसे इश्काना करार दिया

किसी और की मैं कैसे इबादत करूँ 
लोगों ने मुझे परवाना करार दिया 

उनको सुनकर ही मजहब बनता है 
लोगों ने मुझे मजहबी करार दिया 

उनसे उलझ जायूँ यह दुरुस्त नहीं है
लोगों ने मुझे बुज़दिल करार दिया 

बातों का बोझ मैं नहीं सह पता हूँ 
पर मैंने कब इससे इंकार किया 

नहीं लेना मैंने गलतियों का इंतक़ाम 
मैंने खुद से ही एक इक़रार किया 

या मौला........... 
उनको तहज़ीब दे या मुझको तरतीब 
सुन ले मेरी मैंने तो फरियाद किया 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

2 comments:

  1. वल्लाह क्या बात है अल्फ़ज़ों का अंदाज़े बयां
    तरतीबवार सिलसिला इस की खूबसूरती को,
    और आपका अंदाज़े बयां इस नज़्म को एक
    अलग ही रंगों से सराबोर कर आपने नवाज़ा है

    एक मुबारकबाद तो बनती है नज़्म पसंद आई

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  2. Thank you so much Mr. Arora! for your wonderful comments and wishes! You inspired me and made more responsible to select words more carefully. Gogia

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