Monday 25 December 2017

A-014 डर लगता है तेरे पास 24.4.15--4.15AM

A-014 डर लगता है तेरे पास 24.4.15--4.15AM

डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में
तेरी नज़र से नज़रें मिलाने में
टूटे न सब्र तेरे क़रीब आने में

तेरा अच्छा होना मुझे डराता है
तेरा भरोसा मुझे काट खाता है
न देखो इस क़दर मेरे ए सनम
तेरा ऐसा होना आग लगाता है

तुमने सिर्फ़ चुटकी ही तो काटी थी
सिहरन सारे तन बदन में जागी थी
अंग अंग से छूटने लगा पसीना था
मर ही गई मुश्किल हुआ जीना था

तुमने मेरी कलाई ही तो पकड़ी थी
अंदाज़ा भी है कि कितना तड़पी थी
जान निकल गयी थी हाथ छुड़ाने में
उलझ गयी थी ख़ुद को समझाने में

मुझे प्यार से क़रीब ही तो बुलाया था
पसीना छूटा तन बदन सिहर आया था 
दिल मेरा उछला वो भी तो घबराया था
कुछ कहना चाहता था कह न पाया था

तेरे हाथों के निवाले कुछ कम नहीं
मेरे होठों को भी छुएं कुछ ग़म नहीं
तेरी अदा मुझे बार बार खिलाने की
काफी थी मेरे लिए मुझे रिझाने की

तुमने मुझे छुआ मैं मर ही गयी थी
बाहों में आकर तो डर ही गयी थी
तड़प थी ख़ुद को तुझसे छुड़ाने की
या तड़प थी बाँहों में कसमसाने की

बाहों के दरमियाँ गिरकर भी देखा है
वफ़ा पे शक नहीं तेरी भी एक रेखा है
कैसे कहूँ अब मैं कि तुम मेरे नहीं हो
जहाँ छोड़ा था तुम आज भी वही हो 


अभी मेरा सोलह श्रृंगार भी बाक़ी है
प्रियसी होने का इंतज़ार भी बाक़ी है
मेरे सपने मेरे ख़्वाब भी गौर तलब हैं
स्वप्निल दुनिया ka इज़हार भी बाक़ी है

डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!

आने हँसने और मुस्कुराने में……..!

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