ज़ख्म भी इस बार सिल जाएं
छिप जाएं ज़ख्म के निशां भी
दिल से दिमाग भी मिल जाएं
मग़र
कहानियों का भी भण्डार होगा
बार-बार उनका भी प्रहार होगा
हर बार लौटेंगी वही कहानियां
जिसका न कभी इंतज़ार होगा
जुगनु की तरह टिमटिमाएँगे
बेशक रजनी का प्रहार होगा
पूरा जहां गहन निद्रा में होगा
तुम्हें सुबह का इंतज़ार होगा
शक और शुबह के आँगन में
बेसब्री में दिल बेकरार होगा
लौट-लौट आएंगे वही निशां
तेरे लिए जो व्यभिचार होगा
छूटेंगी जब तुमसे कहानियां
तभी जाकर निर्विवाद होगा
तुम्हारी स्वीकृति पूरा करेगी
ज़िन्दगी में अविष्कार होगा
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'
ਪੂਰਾ ਜਹਾਨ ਗਹਿਨ ਨਿੰਦਰਾ ਮੇ ਹੋਗਾ ਤੁਮਹੇ ਸੁਭਹ ਕਾ ਇੰਤਜਾਰ ਹੋਗਾ ਖੂਭ ਬਹੁਤ ਖੂਬ
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