Tuesday 26 December 2017

A-248 ये बचपन हमारा है 2.3.17--10.48 PM

A-248 ये बचपन हमारा है  2.3.17--10.48 PM

कौन किस से हारा और क्यों हारा था 
मुझको नहीं पता वही बचपन हमारा था

लड़ते थे झगड़ते थे, घोड़े पर भी चढ़ते थे 
न हमारा तुम्हारा था, वही बचपन हमारा था  

टूटे टिंकू बिखरे गुड़िया, रोना था जादू की पुड़िया 
रोना ही सबसे प्यारा था, वही बचपन हमारा था  

रेत के टीलों पर हम, मिलकर घर बनाते थे 
जैसे ही कोई पैर पड़े, हम कितना घबराते थे 

रोते रोते घर जाते थे, माँ को सब बताते थे 
फिर से नया घर बना, तोड़ते और तुड़वाते थे 

घर किसी ने तोड़ दिया, रिश्ते से मुहँ मोड़ लिया 
रिश्ता बनता दोबारा था, वही बचपन हमारा था  

सात समंदर पार से किस्से कहानियाँ ले आते थे 

दादा दादी भी चस्के लेकर हमको खूब सुनाते थे 

No comments:

Post a Comment