Monday 25 December 2017

A-155 एक कदम 13.1.16—10.01

A-155 एक कदम 13.1.16—10.01

एक कदम की बात का रंग 
वही तो है विश्वास का अंग 

तेरा मन विश्वास जगत का 
तेरा मन एहसास भगत का

तेरा होना ही तय करे प्राणी
चाहे तो बन जाये अभिमानी

जब भी कहीं रुक जाता है
जब मन से बहुत घबराता है 

जब तेरी समझ नहीं आता है
फिर बाद में मन पछताता है 

जब चाहे तभी तो झुकता है
तेरा अपना ही कोई नुक्ता है 

जो तय कर रखी सीमाएं हैं
जितने बिघ्न और बाधायें हैं 

चाहे बीच भँवर फँस गया है 
या अन्दर जाकर धँस गया है 

तुमको समझ में नहीं आनी है 
सब तेरी अपनी ही कहानी है 

छोड़ कहानी तू चलता चल
नित्त प्रण कर नित्त श्रम कर

नित्त धर्म कर नित्त कर्म कर
तू बढ़ता चल तू चढ़ता चल

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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