बातों बातों में तकदीर बदलती देखी है
यह मुकम्मल था जो तुमने ठुकरा दिया
मुकम्मल होती तस्वीर बदलती देखी है
सारे जहां से पूछते रहे तेरे घर का पता
आबो-हवा की तासीर बदलती देखी है
दिल थाम के जब बैठे हम तेरी राहों में
धड़कन की भी नज़ीर बदलती देखी है
नहीं बदला वो केवल जिस्म है तुम्हारा
मुखौटे के संग तस्वीर बदलती देखी है
नहीं बदलती फितरत पूछने की हमारी
चापलूसी की तदबीर बदलती देखी है
दूर जाना सजा देना फितरत है तुम्हारी
तुम्हारी प्यारी तक़रीर बदलती देखी है
चाहत का सिलसिला भी यूँ चलता रहे
स्थिति गंभीर से गंभीर बदलती देखी है
आगे बढ़ के तेरे बारे में न पूछ ले कोई
हमने अपनी ही ज़मीर बदलती देखी है
तुझे बाँहों में बाँधने को दिल मचल रहा
मगर वक़्त की ज़ंजीर बदलती देखी है
कैसे कहे गोगिया कि तू अब भी मेरी है
नखरों से भरी तक़रीर बदलती देखी है
Poet: Amrit Pal Singh 'Gogia'
Beautiful art of expression in poetic lines !!
ReplyDeleteThank you so much Manjit Ji for your wonderful comments. Gogia
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ReplyDeleteArora Saheb! Thank you so much for inspiring e each time. Gogia
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