Thursday 28 December 2017

A-192 तेरी नफरत

A-192 तेरी नफरत
तेरी नफरत मुझे डराती है 
तुमसे दूर मुझे भगाती है 

यह तेरी शिकायतों का स्वर है 
वही बिमारी है वही तो ज्वर है

तेरी नफरत कर देती है मुझे उदास 
नहीं चाहती है नहीं रहूँगा तेरे पास 
तेरी नफरत के बहुत से कारण होंगे 
शिकायतें होंगी मगर अकारण होंगे 

तेरी आखों में चिँगारी भी दिखती हैं 
झुलस रही है तूँ हर पल तू हर रात 
तेरी आखों का सूनापन भी दिखता है 
तेरी आखों से हो रही होती है बरसात 



सारा जहाँ सिमट जाता है तेरे चेहरे पे 
उदासी दिखती है बन कर तेरा एहसास 
उम्र के इस ढलान पर अँधेरा छाने लगा 
किस से शिकायत कोई नहीं तेरे पास 

परिवार का सहारा भी खिसकता सा है 
आँसूओं की तरह ये कहीं बिखरता सा है 
भरोसा नहीं रहा अपनों का इस ज़िंदगी में 
भरोसा खुद का भी कहीं सिमटता सा है 

ज़िंदगी लड़खड़ाने लगी अपाहिज की तरह 
चला जाता भी नहीं एक मुसाफिर की तरह 
छोड़ ही देती ये दुनिया गर मेरे वस में होता 
मज़बूरी है ज़िंदगी की कोई साथ तो होता 

नफरत क्यूं न करूँ जब मैं ही तनहा हो गयी 
कोई पास आता नहीं एक रात यूं ही सो गयी 
सारी दुनिया मेरे इर्द गिर्द घूम कर पूछने लगी 
क्या हुआ है जो तूँ इस कदर तनहा हो गयी 

कोई भी मेरा नसीब नहीं इस ज़िंदगी में 
उसी का सहारा है निकल जाऊँ बंदगी में 
क्या रखा है इस कल कल की गंदगी में 
जो मिला उसी के साथ जिऊँ पसंदगी में

ऐसी झूठी तसल्ली नहीं चाहिए अब और मुझे 
सब झूठ है बकवास है कोई परमात्मा नहीं 

आपकी नफरत में मुझे प्यार नज़र आता है 
गुस्से में भी प्यार का इज़हार नज़र आता है 
कौन किसी को कहता है अपनों के सिवा  
आपकी झिरकिओं में आभार नज़र आता है 

सम्भालो खुद को कर के देखो गैरों से नफरत 
नफरत से भी पहले रिश्तों को बनाना पड़ता है 
रिश्तों को सजायो पहले और फिर नफरत करो 
फिर अपनों का संसार खुद ही गवाना पड़ता है 

खुल के बात करो गर मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ 
सजा भी मुकर्रर करो उसके लिए भी तैयार हूँ 
पर ये तो बताओगे न कि मैंने किया क्या है 
तुम कैसे घायल हुए मैं कितना गुनहगार हूँ 

नींद आपकी उड़ गयी है आपकी आखों से 
और ऐसा इस बार नहीं ये हर बार होता है 
शिकायतों का सिलसिला तो चलता रहेगा 

यहाँ भी रो रोकर बुरा हाल होता है 

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