Monday 25 December 2017

A-162 एक झलक -29-4-15—3.38 AM

उसकी आँखों में संशय की झलक देखी है 

सच बोलने की तमन्ना और ललक देखी है 


प्यार करने की कशिश और तलब अनुरूप 

इनकार में इकरार की एक झलक देखी है 


टूटते हुए सपने भी देखे हैं उसकी निगाहों में 

बिफरते हुए आहों में उसकी ललक देखी है 


उसकी गाथाओं में स्वप्निल सी व्यथा देखी 

उसकी अदाओं में भी उसकी तड़प देखी है  


उसकी निगाहों में हया का चेहरा तमतमाया 

बढ़ती हुई धड़कन उसकी हर बढ़त देखी है 


मुरझाया हुआ चेहरा उसका गुलबदन देखा

दुविधा वश सोच में पड़ी और मग्न देखी है 


उसकी आँखों में ग़ज़ब का वीराना है देखा 

सन्नाटे से तबाही पारे की चढ़त देखी है


छू लिया गर तो देखे हैं उँगलियों के निशां 

गुस्से से भड़कती हुई उसकी नज़र देखी है 


शैतानी भरी आँखों में गज़ब का है रुतबा 

बाँहों में आती इतराती क्या नस्ल देखी है 


उसका रूठना और खुद ही मान भी जाना 

उसके प्यार की अन-कही ग़ज़ल देखी है 


अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

3 comments:

  1. वक्त के लम्हों से यादों के झरोखों से
    कुछ हसीन पल दिल में बसा गया कोई
    आप की नज़्म से याद किसी की ताज़ा
    कर गया कोई।

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  2. मन की अवस्था का विमोचन बहुत खुब शब्दों से किया ! सुन्दर !!

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