Thursday 28 December 2017

A-281 एक क़दम और 5.5.17-10-09 AM

A-281 एक क़दम और 5.5.17-10-09 AM

रुक जाओ गर उठा लेना एक क़दम और 
मंज़िल की ओर बढ़ा लेना एक क़दम और 
एक निशां मिलेगा वो भी तेरा अपना होगा 
मत होना निराश बढ़ा लेना एक क़दम और 

चलते रहना चलते चलो एक क़दम और
मिल जायेंगे राही कई, कई मज़हब और
महक उठेगी फ़िज़ा भँवरों की गुफ्तगू में  
अपना ही बना लेना बना के उसे सिरमौर 

कैसे जान पाओगे कि तुम भला कौन हो 
कैसे बता पाओगे कि आज क्यों मौन हो 
नाराज़ हो गुनहग़ार हो या ख़िदमतगार हो 
या तुम बन चुके मात्र एक शिल्पकार हो 

क़रीब आने से तुम क्या कुछ बता पाओगे 
क्या मुझे भी तुम कुछ ऐसा समझा पाओगे 
जिससे तुम्हारे मौन का मतलब दिख जाये 
क्या तुम उसपर थोड़ी रोशनी डाल पाओगे

तुम कुछ कहना चाहते हो पर कहते नहीं 
नहीं सहना चाहते मग़र ऐसे भी रहते नहीं 
कब तक सम्भाल रखोगे अपनी ये विचार 
दिखावे की दुनिया में फँसे तुम जैसे हज़ार 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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