Monday 25 December 2017

A-173 मौत का डर 10.4.16—10.28 AM

A-173 मौत का डर 10.4.16—10.28 AM 

मौत का डर लिए हुए डर का जाम पिए हुए 
घूँट घूँट कर पी रहे हैं हरि हरि नाम लिए हुए 

मौत का ताण्डव हर घर में घूम घूम जाता है 
हर तरफ़ मातम का सरमाया नज़र आता है

कौरव को खाया पाण्डव को भी निगल गया 
इसके ताण्डव को देख ब्रह्मा भी पिघल गया 

न जमीन पर सहर है न आसमान पर कहर है 
यह हर जीव की गाथा है लिखा हुआ पहर है 

सच है ज़िन्दगी का सब के लिए यह मुखर है 
नज़र अंदाज़ कर बनाया जीवन को शिखर है 

क्या रखा है डर के साये ज़िंदगी के जीने में 
मौत छिपा रखी है दर्द छिपा रखा है सीने में 

पल भर के लिए मौत की सच्चाई जान लो 
डर से निज़ात मिले ज़िंदगी को पहचान लो 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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