Monday 25 December 2017

A-161 नन्ही सी गुड़िया 27.6.17—6.09 AM

मैं छोटी नन्ही सी गुड़िया 
फिर भी उठ जाना पड़ता है 
उठने में देर नहीं हो सकती 
मुझे नित्य नहाना पड़ता है 

शीघ्रता से तैयार हो जाओ 
वर्ना चांटा खाना पड़ता है 
नाश्ता भी शीघ्रता से खाओ 
कर्तव्य निभाना पड़ता है 

होमवर्क के नित्य नए फैशन 
को भी निभाना पड़ता है 
स्कूल में मैंने क्या किया है 
यह सारा बताना पड़ता है 

मेरी जरुरत बहुत थोड़ी है 
मुझे यह जताना पड़ता है 
मम्मी पापा का तेवर देखकर 
उनको मनाना पड़ता है 

नाटक सारे बंद कर दिए हैं 
यह भी दिखाना पड़ता है 
ख़ुद फ़ास्ट फ़ूड हैं खाते 
मुझे घर का खाना पड़ता है  


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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