Monday 11 December 2017

A-118 आज कविता से 6.6.15—6.36 AM

A-118 आज कविता से 6.6.15—6.36 AM 

आज कविता से मेरी बात हुई है 
मिलकर थोड़ी सी जज्बात हुई है 

गिले शिकवों का हिसाब हुआ है 
सच भी थोड़ा यूँ बेनकाब हुआ है 

तुम कहती हो तुम शर्माती नहीं हो 
फिर हर बात क्यों बताती नहीं हो 

कौन सी बला जो तुम्हें रोकती है 
कहना चाहती हो पर झंझोरती है 

तुम्हीं ने कहा था रोज आया करो 
बाँहों में रोज़ाना तुम छिपाया करो 

अब कैसे मुझसे दूर रह पाओगी 
कम से कम इतना तो बताओगी 

शरमा लो शरमाने से क्या मिला 
आगोश में आकर देखो तो भला 

क्यों कर तड़पना है दिखाना है 
ये तरीका तो बहुत ही पुराना है 

रिश्तों की बावत हमने निभानी है 
आओ आज हमने कसम खानी है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”



You can also visit my other blogs
Hindi Poems
Hindi Poems English Version
English Poems
Urdu Poems
Punjabi Poems






No comments:

Post a Comment