Thursday 28 December 2017

A-323 मजबूरियाँ 14.10.17--6.55 AM

A-323 मजबूरियाँ 14.10.17--6.55 AM
कुछ तुम्हारी मजबूरियाँ रही होंगी  
कुछ हमने भी तो किए गुनाह होंगे 
कुछ बीती बातों की कसक होगी 
कुछ जज़्ब होकर हुए स्वाह होंगे 

न रख इतनी आग अपने सीने में 
बुझानी पड़े वो खुद के करीने से 
तबीयत अपनी ही नासाज़ होगी   
जिंदगी खुद की जालसाज़ होगी 

जुदाई ही तो मिलन का दस्तूर है 
नहीं पता लगता किसका कसूर है 
सिक्के के पहलुओं की कहानी है 
चिपके रहना व्यर्थ और बेमानी है 

हमने किया तुम भी स्वीकार करो 
ज़िन्दगी को यूँ न तुम ख़राब करो 
चन्द दिनों की कहानी पर मुनस्सर 

इस कहानी को यूँ न आबाद करो 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”



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