A-153 पराया हाथ 26.3.16—5.29 AM
अपनों का साथ हो एक पराया हाथ हो
कौन छोड़े भला जब उनसे मुलाक़ात हो
वक्त का पहरा और दो दिन की बात हो
तन मन मेरा हो और उनका विश्वास हो
ज़िंदगी के मुहाने जब ऐसी कोई बात हो
संभल के चलना तब प्रेयसी की बात हो
भीतर के राज सहज ही खुलने लगें जब
अँखियाँ नम हों मानो हो रही बरसात हो
स्वप्न मचलने लगें जैसे कोई आधार हो
अल्फ़ाज़ मिलने लगे जैसे कोई धार हो
दृष्टिकोण की श्रृंखला जैसे जज़्बात हो
सृष्टि के उसूलों से पहली मुलाक़ात हो
उनके संग रहने में नहीं कोई इन्कार हो
भेद कोई जाने बिना समस्त स्वीकार हो
सहज स्वीकृति भली न कोई आधार हो
उनसे हर मुलाकात में बस मेरा प्यार हो
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
You can also visit my other blogs
Hindi
Poetry Book-“Meri Kavita Mera Sangam” Available at
Snap Deal
Beautiful words !!
ReplyDeleteThank you so much Manjit ji! For your wonderful expressions and words!
Delete