Tuesday 26 December 2017

A-204 जानवर 14.11.16--10.40 AM

मैं एक चापलूस जानवर हूँ जबरन बिंदास हूँ
सारी दुनिया में फेल मगर दिखावे में पास हूँ 

अगर सच बोलूँ तो मैं सच बोलता ही नहीं हूँ 
मैं झूठ को भी सच से कम तौलता ही नहीं हूँ 

लगता नहीं कि तुमसे कोई झूठ बोल रहा हूँ
मग़र सत्य यही है कि मात्र कूठ घोल रहा हूँ 

नहीं आता ग़र यकीन मेरी किसी सच्चाई पर 
लगा दे न मोहर तू भी मेरी किसी रुस्वाई पर 

कैसे लगा पायेगा तू कोई भी इल्ज़ाम मुझपर 
अपने तोहमत देख जो दिखे शरेआम तुझपर

कुत्तों की तरह भौंकूंगा कुछ नहीं कर पायेगा 
बिल्ली जैसे भागोगे और डर बहुत सताएगा 

ऐसे बोझ उठाता हूँ गधा भी मार खा जायेगा 
घोड़े को क्या पड़ी जो मुझसे आ टकरायेगा 

बन्दर जैसी उछल कूद भी मैं खूब मचाता हूँ 
खुद भी नाचता रहता हूँ औरों को नचाता हूँ 

फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि मैं सोच कर नचाता हूँ 
मगर जानवरों को मैं बहुत ही बेबस पाता हूँ 

वो सारे काम करते हैं जो इन्सान भी है करे 
सुखी हो दुखी हो मगर वो आत्महत्या न करे 

कुछ विवेक तो मालिक ने उसको भी दिया है 
तभी तो कुत्ता भी स्वामी के लिए भी जिया है 

दुखी मेरा इतिहास है चाहकर भी जीता नहीं 
रात मेरी हरम में गुजरती दिन में मैं पीता नहीं 

गोगिया तू भरोसा कर मगर कर तू श्वान पर 
मत करना भरोसा तू लोमड़ी जैसे इन्सान पर 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

4 comments:

  1. हिम्मतवर कविता जो किरदार को झकझोर रही है !

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  2. Very well written so true ...

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  3. Thank you so much for your comments!

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