मैं एक पेड़ का पत्ता हूँ
मैं धन्यवादी हूँ अपनी टहनी का
जिसने मुझे पकड़ रखा है
टहनी की उस टहनी का जिसने उसे पकड़ रखा है
टहनी की उस टहनी का जिसने उसे पकड़ रखा है
और टहनी के उस मूल शाखा का
जिसने उसे पकड़ रखा है और खुद तने से जुड़ी हुई है
और उस तने का जो जड़ से जुड़ा हुआ है
और हमारे लिए जड़ से जीवन को लाकर
रोज नया जीवन प्रदान करता है
और उस जड़ का जो पृथ्वी से जुड़ी
सारा का सारा बोझ अपने कन्धों पर
लेकर चौबिसों घंटों हमारी सेवा में तत्पर है
और उस पृथ्वी का जिसने
हम सब का बोझ अपने कंधे पर ले रखा है
और हमारे लिए जल का प्रबन्धन करती रहती है
और उस जल का भी धन्यवादी हूँ
जो पता नहीं आकाश पाताल से होता हुआ
सारी बाधाएँ लांघकर भी उन जड़ो तक पहुँचता है
जिस पर हमारी ज़िन्दगी निर्भर करती है
उन बादलों का जो इतना पानी का भार ढोए हुए
सदा घूमते रहते हैं और जताते भी नहीं
उन वाष्प कणों का जो अदृश्य रूप से
चौबिसों घंटों हमारी सेवा में तत्पर है
उन किरणों का जो वाष्प कणों को
अपनी उष्मा देकर कर जीवित रखती हैं
और उस सूर्य का जो किरणों का
जन्म दाता है फिर भी कभी नहीं जताता है
और अंत में उस परमात्मा का
जिसने इतनी विशाल लीला रची
मात्र मुझ जैसे तुच्छ पत्ते को
जीवित रखने के लिए
मैं ऋणी हूँ , मैं ऋणी हूँ
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'
Nice
ReplyDeleteThank you so much! Khushi ji
Deleteजिंदगी का खूबसूरत वर्णण हर पहलू की बारीकी से व्याख्या दर्शाती है आपके हृदय की संवेदांता।
ReplyDeleteपड़ कर मन अति प्रसन्न हुआ।
आपको बधाई।
ITS A VERY NATURE FEELING POET
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