Monday 25 December 2017

A-151 पेड़ के पत्ते -13.6.15 -8:43PM

मैं एक पेड़ का पत्ता हूँ 

मैं धन्यवादी हूँ अपनी टहनी का 

जिसने मुझे पकड़ रखा है 

टहनी की उस टहनी का जिसने उसे पकड़ रखा है 

टहनी की उस टहनी का जिसने उसे पकड़ रखा है 

और टहनी के उस मूल शाखा का 

जिसने उसे पकड़ रखा है और खुद तने से जुड़ी हुई है 


और उस तने का जो जड़ से जुड़ा हुआ है 

और हमारे लिए जड़ से जीवन को लाकर 

रोज नया जीवन प्रदान करता है 


और उस जड़ का जो पृथ्वी से जुड़ी 

सारा का सारा बोझ अपने कन्धों पर 

लेकर चौबिसों घंटों हमारी सेवा में तत्पर है 


और उस पृथ्वी का जिसने 

हम सब का बोझ अपने कंधे पर ले रखा है 

और हमारे लिए जल का प्रबन्धन करती रहती है 


और उस जल का भी धन्यवादी हूँ 

जो पता नहीं आकाश पाताल से होता हुआ 

सारी बाधाएँ लांघकर भी उन जड़ो तक पहुँचता है 

जिस पर हमारी ज़िन्दगी निर्भर करती है 


उन बादलों का जो इतना पानी का भार ढोए हुए 

सदा घूमते रहते हैं और जताते भी नहीं 


उन वाष्प कणों का जो अदृश्य रूप से 

चौबिसों घंटों हमारी सेवा में तत्पर है 


उन किरणों का जो वाष्प कणों को 

अपनी उष्मा देकर कर जीवित रखती हैं 


और उस सूर्य का जो किरणों का 

जन्म दाता है फिर भी कभी नहीं जताता है 


और अंत में उस परमात्मा का 

जिसने इतनी विशाल लीला रची 

मात्र मुझ जैसे तुच्छ पत्ते को 

जीवित रखने के लिए 

मैं ऋणी हूँ , मैं ऋणी हूँ 


अमृत पाल सिंह 'गोगिया'



4 comments:

  1. जिंदगी का खूबसूरत वर्णण हर पहलू की बारीकी से व्याख्या दर्शाती है आपके हृदय की संवेदांता।
    पड़ कर मन अति प्रसन्न हुआ।
    आपको बधाई।

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  2. ITS A VERY NATURE FEELING POET

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