इतनी दूर क्यों खड़े हो पास मेरे तुम आओ न
अँखियाँ न भरो तुम यूँ मुझे भी यूँ रूलाओ न
काँपते होठों से सहीं जो भी हुआ बताओ न
सारा बोझ उठा रखा है मुझे भी दे जाओ न
थोड़ा सब्र करो खुद को तुम यूँ तड़पाओ न
बरस पड़ो मुझ पर खुद को तुम सताओ न
तेरी ख़ुशिओं के सहारे ही तो हम ज़िन्दा हैं
ये सहारा मुझ से छीन तुम लेकर जाओ न
थोड़ी देर के लिए ही सही मगर आ जाओ
मेरी बाँहों में आकर थोड़ा सा मुस्कुराओ न
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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