Monday 25 December 2017

A-167 बदचलन हवा-11.8.15—12.25PM

A-167 बदचलन हवा-11.8.15—12.25PM 

बदचलन हवा का बहाव उसका गुस्सा 
बंद पड़ी खिड़की को भी जोश आया 

द्वारपाल भी थोड़ा विचलित होने लगा 
शोर के समक्ष कुंडे ने भी शोर मचाया 

रुक रुक के दस्तक किये वो देता था 
फिर शांति ने भी जमकर उधम मचाया 

हवा के दबाव में जिंदगी दबी पड़ी थी 
मायने बदलते गए मन को होश आया 

हवा की बेरुखी ही उसका स्वभाव है 
कोई नहीं जो कभी भी उससे टकराया 

हवा टकरा कर खुद ही ठहर गयी है 
लहू लोहान जिंदगी को समझ आया 

सब कुछ उजड़ कर बिखर गया जब 
कुछ ऊँचा दिखा कहीं सिफर आया 

दरवाजों पर पड़े वो दस्तक के निशां 
कोई होकर गया उनका जिक्र आया 

दरवाजे खोल डाले कोई पर्दा न रहा 
जिंदगी की नग्नता थोड़ा मन घबराया 

न करो दस्तक किसी बंद दरवाजे पर 
पता नहीं कोई नग्न है कोई सरमाया 

दस्तक भी तो सिर्फ तभी होती है वहां 
जहाँ बंद हों दरवाजे लिपटी हो काया 

खुल कर इजहार कर लो जिंदगी का 
न रहे पर्दा न लगे ज़िस्म को छुपाया 

नग्नता ही सच्चाई हो ज़िंदगी की जब 
सकूं की नींद और भरपूर लुत्फ़ भाया 



Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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