बदचलन हवा का बहाव उसका गुस्सा
बंद पड़ी खिड़की को भी जोश आया
द्वारपाल भी थोड़ा विचलित होने लगा
शोर के समक्ष कुंडे ने भी शोर मचाया
रुक रुक के दस्तक किये वो देता था
फिर शांति ने भी जमकर उधम मचाया
हवा के दबाव में जिंदगी दबी पड़ी थी
मायने बदलते गए मन को होश आया
हवा की बेरुखी ही उसका स्वभाव है
कोई नहीं जो कभी भी उससे टकराया
हवा टकरा कर खुद ही ठहर गयी है
लहू लोहान जिंदगी को समझ आया
सब कुछ उजड़ कर बिखर गया जब
कुछ ऊँचा दिखा कहीं सिफर आया
दरवाजों पर पड़े वो दस्तक के निशां
कोई होकर गया उनका जिक्र आया
दरवाजे खोल डाले कोई पर्दा न रहा
जिंदगी की नग्नता थोड़ा मन घबराया
न करो दस्तक किसी बंद दरवाजे पर
पता नहीं कोई नग्न है कोई सरमाया
दस्तक भी तो सिर्फ तभी होती है वहां
जहाँ बंद हों दरवाजे लिपटी हो काया
खुल कर इजहार कर लो जिंदगी का
न रहे पर्दा न लगे ज़िस्म को छुपाया
नग्नता ही सच्चाई हो ज़िंदगी की जब
सकूं की नींद और भरपूर लुत्फ़ भाया
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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