Monday 25 December 2017

पगडण्डी का कमाल 21.2.16—10.08 PM

 पगडण्डी का कमाल 21.2.16—10.08 PM

पगडण्डी का कमाल तो देखो 
पतली सी पर धमाल तो देखो 

साथ साथ वो चलती है 
कभी नहीं फिसलती है 

ऊँची नीची जैसी भी है 
भेद भाव नहीं रखती है 

वायदे से नहीं वो मुकरती है 
राह चलते बातें भी करती है 

पूरा पूरा साथ वो निभाती है 
घर तक छोड़ कर आती है 

पड़ी हुई भी मुस्कराती है 
सुबह फिर छोड़ने जाती है 

रात अँधेरे दिया न बाती है 
जिस्म पे जख्म वो खाती है 

जो जैसा है वैसा है 
जो जैसा नहीं हैं वैसा नहीं है 
फिर भी साथ निभाती है 
उसकी यही बात 
मुझे बहुत भाती है 

बारिश मौसम जैसा भी हो 
फिर भी रहती मुस्कराती है ....... 
फिर भी रहती मुस्कराती है .......

Poet; Amrit Pal Singh Gogia
Visit my blog; gogiaaps.blogspot.in

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