Thursday, 28 December 2017

ZZZ A-187 एक बार हम


A-187 एक बार हम
एक बार हम कहीं जंगल में खो गए 
रात तनहा हुई और उसके आगोश में सो गए 
गयी रात उसने मुझे अपना कहकर पुकारा था 
कितना हसीन सपना था और वो कितना प्यारा था 

आँखें खुली तो हम तन्हा हो रहे थे
पागलों की तरह हम तभी रो रहे थे 
कहाँ गयी वो अभी अभी तो यहीं थी 
शायद सपना था वो कहीं भी नहीं थी 

हमने आजू बाजू सारा छान मारा था 
कैसे जा सकती है वो अब किसका सहारा था 
मैंने खुदा की मिन्नतें भी की, कि सुन ले पुकार 
वरना नहीं चाहिए तुम्हारा यह सपनों का संसार 

बहुत समझता है न अपने आपको फनकार 
तो कर के दिखा दे न मेरे सपनों को साकार 
नहीं चाहिए तेरा कोई भी एहसान और आभार 
नहीं तो तोड़ना पड़ेगा तुम्हें सपनों का संसार 

आज के बाद अगर वो सपनों में आएगी 
तेरी कसम फिर कभी वो लौट न पायेगी 
जाने न दूंगा उसे फिर तुम्हें मुश्किल होगी 
तेरी नियत इस रात को लेकर पछताएगी 

तूँ क्या समझता है तूँ खुदा क्या बना तो खुदा हो गया 
इतना आसान नहीं है कोई जुदा हुआ तो जुदा हो गया 
अरे वो मेरी है तुम्हें क्या हक़ उसे छीनकर ले जाने का 
तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है वो ताकत वो हक़ परवाने का 

तुमने सुना नहीं होगा किस्सा शमा और परवाने का 
किस्से कहानियां मशहूर है मैं तो हूँ उस ज़माने का  
तिल तिल मरना और कितना दर्द हुआ मेरी रानी को 
छीन लूँगा तुमसे मैं अपनी बफा की उस दीवानी को

थोड़ी शर्म कर लो क्या सोच तुमने चुना मेरी रानी को 
पता है तुझे मैं भी मर जाऊंगा, छोड़ दे मेरी दीवानी को 
तुम्हारे और भी तरीके होंगे जब तुमने सजा सुनानी हो 
मुझे भी चुन लो दे दो सजा क्यूँ किसी को परेशानी हो 

तुम्हें पता भी है कि जुदाई का दर्द भला कैसा होता है 
सिर्फ उसको पता है जो कभी किसी से जुदा होता है 
अक्ल आ जाती ठिकाने गर तुम भी कभी फ़िदा हुए होते 
दर्द भी समझ आता काश तुम भी किसी से जुदा हुए होते 

माफ़ करना ऐ मेरे खुदा मुझे मेरी बद्तमीजीओं के लिए 
मैं तो पागल ही हो गया था थोड़ा भावुक भी हो गया था 
थोड़ी मेरी बिमारी भी थी और थोड़ी सी लाचारी भी थी 
थोड़ी तमन्ना भी थी पर जिंदगी किस्मत की मारी भी थी 

अब एक इल्तज़ा है 
मत करना कभी किसी को जुदा ऐ मेरे खुदा 
तूँ तो सब कुछ कर सकता है न ऐसा मैंने सुना 
तेरा इतना भरोसा भी तो कर ही सकता हूँ 
क्यों की तूँ  हर किसी की सुनता है 

क्यों की तूँ हर कैसी की सुनता है। ………

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