A-295 मिल जाए जो 6.6.17--9.26 AM
जब होनी हो एक मुलाक़ात
बन जाए बस एक हंसीं रात
हर बात अपनी मुकम्मल हो
रह न जाये फिर कोई बात
हमारे बीच चले ऐसी बात
सकूं भी हो
तुम रहो हम रहें ऐसी बात
न इसकी चर्चा हो कभी
न रहे कभी कोई इंतज़ार
न कभी कोई बेक़रारी हो
न कभी कोई दिन ख़राब
गर कभी ज़िक्र आ जाये
मिल जाये कहीं मेरा यार
चेहरे पर सकूं के लम्हे हों
उन लम्हों में वो इंतज़ार
जिसकी बात किया करते
जो करते हैं लम्हों से प्यार
एक एक लम्हा जर्रे नसीब
कितनी प्यारी होती है बात
हो जाये कोई करामात
ज़िक्र आए कभी कभार
आज हो जाये मुलाक़ात
हसरत भी इनकी पूरी हो
सपनों को भी आ जाने दो
हो जाने दो और मुलाक़ात
अक्सर वो मिला करते है
आज हो जाये अकस्मात
कुछ हसरत भी रही होगी
तभी चलते रहे दिन रात
ख़ुद को छिपा घूँघट में
मिल जाए जो वो हंसीं रात
जिस में हुई थी मुलाक़ात
बात भी मुकम्मल हो जाये
रह न जाये कोई सवालात
न होगी इसकी चर्चा कभी
न रहे कभी कोई इंतज़ार
न कभी कोई बेक़रारी हो
न करना हो कभी इंतज़ार
मन की बात मुकम्मल हो
गर हो ज़िक्र कभी कभार
उसमें भी ख़ुशी जाग उठे
उठे मन में मीठा सा उभार
हो जाये कोई करामात
ज़िक्र आए कभी कभार
आज हो जाये मुलाक़ात
हसरत भी इनकी पूरी हो
सपनों को भी आ जाने दो
हो जाने दो और मुलाक़ात
अक्सर वो मिला करते है
आज हो जाये अकस्मात
कुछ हसरत भी रही होगी
तभी चलते रहे दिन रात
ख़ुद को छिपा घूँघट में
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