Monday 25 December 2017

A-157 तेरी फ़ितरत 16-5-15—3.05 AM

A-157 तेरी फ़ितरत 16-5-15—3.05 AM 

तेरी फ़ितरत जो कर देती है उदास 
चाहत तेरी दूर रहे चाहे रहे तू पास 
पास आता हूँ तो मुँह घुमा लेती हो 
दूर से देखूं तो नज़रों में है उल्लास 

तेरी फ़ितरत के बहुत कारण होंगे 
कुछ वैद्य होंगे कुछ अकारण होंगे 
तेरी आखों का सूनापन दिखता है 
कारण बड़े होंगे या साधारण होंगे 

समझ में कुछ भी आता जाता नहीं 
समझ लेता तो कभी घबराता नहीं 
तू ही बता थोड़ा उदासी का सबब 
तेरे बिना तो मैं मुस्कुराता भी नहीं 

नैनों में जब हो रही होती है बरसात 
टप-टप आँसूं गिरें न हो कोई बात 
सारा दर्द चेहरे पर सिमट आता है  
परेशान होते हो चुभती है हर बात 

न बताओ सबब अपनी उदासी का 
कर लो भरोसा तुम बदहवासी का 
सारा जहां चेहरे पर सिमट जाता है 
चेहरा भी मरासी का नज़र आता है 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”




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