Tuesday 26 December 2017

A-274 एक और कविता 3.5.17--7.46 AM

A-274 एक और कविता 3.5.17--7.46 AM

एक और कविता 
जिसको जाना नहीं कभी पहचाना नहीं 
फिर भी कहीं माशूक़ बन कर आ गयी 
दिल में उतर छुप गयी दिल में ही कहीं 
गुदगुदी सी हुई कहीं मस्ती सी छा गयी 

पूछती है वायदा किया क्या निभाओगे 
रह रह कर मेरी जान तो नहीं खायोगे
कितने सहारों को छोड़कर आयी हूँ मैं 
क्या जन्मों जन्म मेरा साथ निभाओगे 

बड़ी अजीब दास्ताँ हैं इन हसीनों की 
ये वायदों पर ज़्यादा भरोसा करती हैं  
जिससे प्यार किया उनपर फ़िदा कम 

वायदा करने वालों पर ज़्यादा मरती हैं 

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