A-338 माँ तुम आओ न 21.12.17--6.34 AM
माँ तुम आओ न
कान पकड़ समझायो न
मेरी तो कोई सुनता नहीं
तुम ही इन्हें बताओ न
क्या हलाल क्या झटका
टूटा तो फिर वही मटका
चाहे ज़िद में आकर रूठा
चाहे गिर कर खुद ही टूटा
कैसे यह धर्म हैं
कैसी हैं ये मजबूरियाँ
दिशा ज्ञान के चक्कर में
अधर में अटकें हैं सब
जो कहें सब अधूरियाँ
धर्म ज्ञान के चक्कर में
सब बँधे हुए हैं
सबको पड़ी भसूरियाँ
अपने भी अपने कहाँ रहे अब
अपनों के भी जोश खो गए
अपनों की रंगत को देख
सपने भी मदहोश हो गए
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जान लिया
उनको मनाया ख़ुद को मान दिया
पहचान लिया मैंने अपने अहम् को
अपने अहम् को ख़ुद विश्राम दिया
मेरा मन नहीं लगता अब
अपने पास बुलाओ न
माँ तुम आओ न
कान पकड़ समझायो न
मेरी तो कोई सुनता नहीं
तुम ही इन्हें बताओ न
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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