Thursday 28 December 2017

A-317 क्या यही प्यार था 24.9.17--6.05 AM

A-317 क्या यही प्यार था 24.9.17--6.05 AM 

अपने होने की तमन्ना थी या जुदा होने का करार था 
क्यों कर जुदा हुए तुम क्या बस ऐसा ही सरोकार था 
क्या यही प्यार था 

मशग़ूल रहा करते थे जब महफ़िलों का दरकार था 
हर एक जुदाई पर दिल भी होता कितना बेक़रार था 
क्या यही प्यार था 

ग़र तुम भी जुदा न होते तो क्या रस्मों को संहार था 
मिलकर जुदा होने का क्या तुम्हारा कोई करार था 
क्या यही प्यार था 

तेरी बेबफ़ाई में क्या तेरा बफ़ा होना भी शुमार था 
हमारी मुलाकातों पर क्या वादों का इख़तियार था 
क्या यही प्यार था 

तेरी निकटता का जादू भी सर चढ़ के बोल रहा था 
मेरे प्यार का यही तोहफ़ा जो  मुझको स्वीकार था 
क्या यही प्यार था 

मिलकर जुदा हो जाना फिर मिलने से भी कतराना 
फिर कुछ भी नहीं बताना औरों के संग चले जाना
क्या यही प्यार था 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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6 comments:

  1. Very true & harttuching lines

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    1. Thank you so much for your wonderful comments and inspiration

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  2. इसी ख्याल से गुज़री है शामे-दर्द-अक्सर;
    की दर्द हद से जो गुज़रेगा मुस्कुरा दूँ गा।

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  3. This comment has been removed by the author.

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