Monday 25 December 2017

A-058 चीखते चिल्लाते 17.4.16—11.28 AM

A-058 चीखते चिल्लाते 17.4.16—11.28 AM 

चीखते चिल्लाते ढोलक को पीटते 
साज़ को सजाते स्वरों को घसीटते 

सुर संगम में लगे सुरों को ही ढूँढ़ते 
कभी निहार लेते कभी आँखें मूंदते 

बची खुची कसर नृत्य से निकालते 
ऊँचे ऊँचे स्वरों में उसको भी ढालते 

ऊँचे ऊँचे स्वरों में किसको पुकारते 
ख़ुदा बहरा है या ख़ुद को हैं थापते  

ख़ुदा तक पहुँचने की मुकम्मल तैयारी है 
रह न जाये कसर कोई फ़ितरत हमारी है 

कोई बूढ़ा है बीमार है उसका किरदार है 
सज़ा तो भुगतनी है उसका वो हक़दार है 

नींद कहाँ आती है आगे कहाँ सोते हैं 
झपकी आ जाये तो किश्तों में होते हैं 

सारा साल पढ़ते नहीं कितने बहाने है 
आज ही उसने सारे सवाल निपटाने हैं 

पास होना है तो आशीर्वाद तो चाहिए 
प्रभु के चरणों में नमस्कार तो चाहिए 

नींद न आयी, के बहाने लोग रो रहे हैं 
सोने वाले तो पंडाल में भी सो रहे हैं 

शिकायतों को लेकर बुज़ुर्ग ही आएगा
अंतिम वक़्त यही बुज़ुर्ग भी पछतायेगा 

अपना सगा कोई जब सो नहीं पाएगा 
तब यही इंसान दूसरों को समझाएगा 

छोटी सी आवाज़ भी इसको तड़पायेगी 
तब कहीं इसको ये बात समझ आएगी 

"पाली" तुम प्रभु का जी भर गुणगान करो 
इससे पहले दूसरे इंसान का सम्मान करो…..

इससे पहले दूसरे इंसान का सम्मान करो…..

—————X—————

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

No comments:

Post a Comment